न्यायिक प्रक्रिया को आम नागरिक के लिए अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी ने एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने अब तक 27,800 से अधिक न्यायिक आदेश और निर्णय हिंदी में पारित किए हैं, जो राजभाषा को न्यायिक कार्यवाही में प्राथमिकता देने का एक सशक्त उदाहरण है।
न्यायमूर्ति चौधरी का यह अभूतपूर्व प्रयास इस सिद्धांत को चरितार्थ करता है कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि यह उन लोगों को समझ में भी आना चाहिए जिन्हें यह प्रभावित करता है। प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा में हजारों निर्णय देकर, उन्होंने कानून की जटिलताओं को आम वादी के लिए सरल बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया है।
हाईकोर्ट के ‘ई-लीगलिक्स’ जजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम द्वारा 12 सितंबर, 2025 तक जारी किए गए नवीनतम आंकड़े इस भागीरथ प्रयास की विशालता को दर्शाते हैं। न्यायमूर्ति चौधरी द्वारा पारित कुल 79,502 निर्णयों में से 27,846 निर्णय हिंदी में दिए गए। इससे एक दिन पूर्व, 11 सितंबर, 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी में दिए गए कुल 27,832 आदेशों में 14,784 अंतिम निर्णय और 13,048 अंतरिम आदेश शामिल थे।

मामलों के प्रकारों का विस्तृत विश्लेषण यह उजागर करता है कि इस पहल का सबसे गहरा प्रभाव व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों पर पड़ा है। आंकड़ों से पता चलता है कि न्यायमूर्ति चौधरी ने हिंदी में 18,049 नियमित जमानत याचिकाएं (BAIL) और 1,196 अग्रिम जमानत याचिकाएं (ABAIL) निस्तारित की हैं। इन दोनों महत्वपूर्ण श्रेणियों में, हिंदी में पारित आदेशों की संख्या अंग्रेजी में दिए गए आदेशों से अधिक है, जो नागरिक स्वतंत्रता से संबंधित निर्णयों को उनकी अपनी भाषा में संप्रेषित करने के सचेत प्रयास को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त, अन्य आपराधिक मामलों में भी बड़ी संख्या में हिंदी में आदेश पारित किए गए हैं, जिनमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत 5,578 आवेदन (A482) और 679 आपराधिक पुनरीक्षण (CRLR) शामिल हैं। विभिन्न प्रकार के मामलों में हिंदी का निरंतर उपयोग एक समर्पित न्यायिक दर्शन को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य समावेशिता को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना है कि अदालत के तर्क सीधे जनता तक पहुंचें, जिससे न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास और मजबूत हो।
न्यायमूर्ति गौतम चौधरी का यह अनुकरणीय कार्य एक प्रेरणा और एक नया मानक स्थापित करता है। यह भाषाई बाधाओं को तोड़ते हुए सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि निस्संदेह भारतीय न्यायपालिका को अधिक जन-केंद्रित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद की जाएगी।