सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को कार्यस्थल मानने से किया इनकार, POSH कानून का दायरा बढ़ाने की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न से संरक्षण कानून (POSH Act) के दायरे में लाने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को “कार्यस्थल” नहीं माना जा सकता और उनके सदस्य “कर्मचारी” नहीं हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजरिया भी शामिल थे, ने कहा कि इस तरह की विस्तृत व्याख्या “पेंडोरा बॉक्स” खोल देगी। पीठ ने टिप्पणी की, “राजनीतिक दल को कार्यस्थल कैसे घोषित करेंगे? क्या वहां कोई रोजगार है? पार्टी में शामिल होने पर नौकरी नहीं मिलती और काम के लिए भुगतान भी नहीं होता।”

READ ALSO  “You Are So Educated, You Should Earn for Yourself": Supreme Court to MBA Qualified Demanding ₹12 Crore Alimony for 18-Month Marriage

यह याचिका अधिवक्ता योगमाया एम.जी. ने अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड श्रीराम पी. के माध्यम से दायर की थी। इसमें 2022 के केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों को POSH कानून के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की बाध्यता नहीं है, क्योंकि पार्टी सदस्य पारंपरिक अर्थों में कर्मचारी नहीं हैं।

Video thumbnail

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने तर्क दिया कि POSH कानून किसी भी इकाई—सरकारी या निजी—को अपवाद नहीं देता। राजनीतिक दलों को इससे बाहर रखना महिला कार्यकर्ताओं को असुरक्षित बना देता है। याचिका में कहा गया कि महिला कार्यकर्ता, स्वयंसेवक, प्रचारक, प्रशिक्षु और जमीनी स्तर की कार्यकर्ता बिना किसी औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र के असुरक्षित माहौल में काम करती हैं।

याचिका में यह भी कहा गया कि राजनीतिक दलों को कानून से बाहर रखना मनमाना, भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है। इसमें यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को POSH कानून की धारा 2(g) के तहत “नियोक्ता” माना जाए, ताकि उन्हें ICC बनाना अनिवार्य हो।

READ ALSO  एनजीटी ने कई राज्यों से वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 'आगे प्रयास' करने, धन का 'पूरा उपयोग' करने को कहा

याचिका में बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीआई(एम), सीपीआई, एनसीपी, टीएमसी, बीएसपी, एनपीपी, एआईपीसी समेत केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को पक्षकार बनाया गया था। इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि जहां CPI(M) ने बाहरी सदस्यों वाली ICC बनाई है, वहीं AAP की संरचना अस्पष्ट है। बीजेपी और कांग्रेस शिकायतों को अनुशासन समिति या राज्य इकाइयों के जरिए निपटाते हैं, जो कानून के तहत तय ढांचे से अलग है।

READ ALSO  Chief Justice Chandrachud Criticizes Lawyer for Not Wearing Neckband, Emphasizes Importance of Dress Code in Court

हालांकि इन दलीलों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल नहीं माना जा सकता। इस निर्णय के बाद महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अब भी पार्टी के आंतरिक तंत्र पर ही निर्भर रहना होगा, न कि POSH कानून द्वारा प्रदत्त वैधानिक सुरक्षा पर।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles