दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) को इस तरह बनाया गया है कि वह प्रवर्तन एजेंसियों को शक्तिशाली बनाए, लेकिन साथ ही व्यक्तिगत अधिकारों की भी रक्षा करे।
न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वडियानाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) यदि जब्त या फ्रीज़ की गई संपत्ति को बनाए रखने के लिए एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी से अनुमति लेना चाहता है, तो उससे पहले एक अधिकृत अधिकारी को औपचारिक आदेश पारित करना होगा, जिसमें यह स्पष्ट कारण बताए जाएँ कि संपत्ति को 180 दिन तक क्यों रखा जाना ज़रूरी है।
पीठ ने कहा कि इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के बिना एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी यह तय नहीं कर सकती कि संपत्ति का मनी लॉन्ड्रिंग से कोई संबंध है या नहीं।

कोर्ट ने कहा कि PMLA की पूरी संरचना में खोज, ज़ब्ती, फ्रीज़िंग, अटैचमेंट और रिटेंशन जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जिनमें विधिसम्मतता, अनुपातिकता और स्वतंत्र निगरानी सुनिश्चित करने के लिए प्रोसीजरल सेफगार्ड्स लगाए गए हैं।
“जब किसी क़ानून में कोई विशेष प्रक्रिया निर्धारित की जाती है, तो उसे उसी तरह से पूरा किया जाना चाहिए, अन्य किसी तरह नहीं,” खंडपीठ ने कहा।
यह आदेश उस याचिका पर आया जिसमें ED ने फरवरी 2019 के PMLA अपीलीय अधिकरण के निर्णय को चुनौती दी थी। अधिकरण ने आरोपी राजेश कुमार अग्रवाल से जुड़ी जब्त/फ्रीज़ संपत्तियों को बनाए रखने की एजेंसी की अपील खारिज कर दी थी।
ED के अनुसार, आरोपी सुरेंद्र कुमार जैन और वीरेंद्र जैन ने जगत प्रोजेक्ट्स से नकद धनराशि कॉरपोरेट इकाइयों के बैंक खातों में डलवाई और इसे शेयर सब्सक्रिप्शन मनी के रूप में दर्शाया। यह लेन-देन वित्त वर्ष 2008-09 में अत्यधिक प्रीमियम पर दिखाया गया। एजेंसी का आरोप है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट अग्रवाल इस साज़िश में सह-साजिशकर्ता थे।