यौन उत्पीड़न मामले में विभागीय बरी होने से आपराधिक मुकदमे पर रोक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यौन उत्पीड़न के मामले में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट पुलिस के क्लोज़र रिपोर्ट से बंधा नहीं है और विभागीय जांच में बरी होने से आपराधिक मुकदमे पर रोक नहीं लगती। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने अतिरिक्त रेज़िडेंट कमिश्नर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354A और 509 के तहत जारी समन आदेश को बरकरार रखा।

मामला क्या था

याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, नई दिल्ली के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा कश्मीर प्रशासनिक सेवा की एक महिला अधिकारी की शिकायत पर cognizance लेने और समन जारी करने के फैसले को सही ठहराया गया था।

शिकायत 31 दिसंबर 2014 को जम्मू-कश्मीर सरकार के आतिथ्य एवं प्रोटोकॉल विभाग को यौन उत्पीड़न से महिला संरक्षण अधिनियम, 2013 (POSH Act) के तहत दी गई थी, जिसे आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को भेजा गया। 11 फरवरी 2015 को ICC ने अपनी रिपोर्ट में आरोप साबित न होने की बात कही।

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साथ ही, 6 जनवरी 2015 को महिला अधिकारी ने पुलिस में शिकायत दी, जिस पर 10 फरवरी 2015 को IPC की धारा 354A, 506 और 509 के तहत एफआईआर संख्या 16/2015 दर्ज हुई। पुलिस ने 21 मई 2016 को सबूतों के अभाव में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की। विरोध याचिका पर मजिस्ट्रेट ने दोबारा जांच का आदेश दिया, जिसके बाद पुलिस ने पूरक क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की, लेकिन 21 अगस्त 2017 को CMM ने पुलिस रिपोर्ट से असहमति जताते हुए cognizance लिया और समन जारी किया। पुनरीक्षण याचिका भी 4 सितंबर 2018 को ASJ ने खारिज कर दी।

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पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता का कहना था कि POSH Act के तहत ICC की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर निचली अदालत ने गलती की है। मोबाइल संदेशों से दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध साबित होते हैं और गवाहों ने शिकायतकर्ता का समर्थन नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण है।

राज्य और शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि विभागीय और आपराधिक कार्यवाही अलग हैं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी प्रभावशाली है और पुलिस ने दबाव में क्लोज़र रिपोर्ट दी। उनके अनुसार, शिकायतकर्ता का धारा 164 CrPC के तहत बयान और चार गवाहों के धारा 161 CrPC के तहत बयान समन आदेश के लिए पर्याप्त हैं।

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अदालत का विश्लेषण

  1. क्लोज़र रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट की बाध्यता
    कोर्ट ने भगवत सिंह बनाम पुलिस आयुक्त और धर्म पाल बनाम राज्य हरियाणा जैसे फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट से असहमत होकर भी cognizance ले सकता है।
  2. ICC रिपोर्ट का प्रभाव
    कोर्ट ने M/s Stanzen Toyotetsu India Pvt. Ltd. बनाम गिरीश वी. का हवाला देकर कहा कि विभागीय जांच और आपराधिक मुकदमे का उद्देश्य अलग है और दोनों में सबूत का मानक अलग है। विभागीय बरी होना FIR से मुक्त होने का आधार नहीं हो सकता।
  3. प्रथम दृष्टया मामला
    कोर्ट ने माना कि यौन उत्पीड़न के आरोप पीड़िता के दृष्टिकोण से देखे जाने चाहिए। शिकायत में आरोपी द्वारा की गई टिप्पणियां — जैसे “सुबह तैयार होते समय आपके मन में क्या आता है”, “अगर कोई आपसे प्रेम करने लगे तो?” — और हाथ पकड़ने की घटना, IPC की धारा 354A और 509 के तहत आती हैं। चार गवाहों के बयानों ने भी आरोपों की पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता का भरोसेमंद बयान अकेले भी दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकता है।
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कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध सामग्री से प्रथम दृष्टया अपराध बनता है। इसलिए याचिका खारिज करते हुए कहा, “Ld. M.M ने सही तरह से क्लोज़र रिपोर्ट को नकारकर कानून के अनुसार cognizance लिया है और Ld. ASJ ने आदेश को सही ठहराया है।”

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