सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मुरलीधर ने अयोध्या फैसले के कानूनी आधार पर उठाए सवाल, बाबरी मस्जिद अवमानना मामले में 22 साल की देरी को बताया ‘अक्षम्य’

वरिष्ठ अधिवक्ता और दिल्ली तथा पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने अयोध्या विवाद और बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े मामलों में न्यायपालिका के रुख पर कड़ी आलोचना की है। उन्होंने विशेष रूप से पूर्व भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के खिलाफ बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए दर्ज स्वत: संज्ञान अवमानना याचिका पर 22 वर्षों तक सुनवाई न होने को गंभीर चूक बताया।

भारत इस्लामी और सांस्कृतिक केंद्र में शनिवार को आयोजित ए.जी. नूरानी स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा,

“यह मामला 22 साल तक नहीं लिया गया। और जब यह न्यायमूर्ति (संजय) कौल के समक्ष सूचीबद्ध हुआ तो कहा गया कि ‘मरे हुए घोड़े को क्यों पीटना’। यह संस्थागत विस्मृति है, जो मेरे विचार से अक्षम्य है, खासकर तब जब उच्चतम न्यायालय ने इसे एक गंभीर अपराध माना था।”

Video thumbnail

अयोध्या फैसले के आधार पर सवाल

उन्होंने 2019 के अयोध्या फैसले के कानूनी आधार पर सवाल उठाते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर निर्माण का निर्देश दिया, जबकि इस संबंध में न तो कोई प्रार्थना-पत्र था, न ही किसी पक्ष ने इसकी मांग की थी।

“अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी किए गए – किसी ने इसकी मांग नहीं की, कोई कानूनी आधार नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, इसलिए कोई विरोध भी नहीं। न केंद्र सरकार के वकील ने, न ही किसी हिंदू संगठन के वकील ने इसकी मांग की। मंदिर निर्माण का मुद्दा उन वादों के दायरे में था ही नहीं,” उन्होंने स्पष्ट किया।

READ ALSO  कानूनी रूप से अनिवार्य खोज और जब्ती प्रक्रिया का पालन करने में पुलिस की विफलता पर ड्रग मामले में गिरफ्तार व्यक्ति को हाईकोर्ट ने जमानत  दी

प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट का हवाला और नए मुकदमे

उन्होंने कहा कि भले ही फैसले में प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट का उल्लेख हुआ, लेकिन देशभर में धार्मिक स्थलों की स्थिति को लेकर नए मुकदमे दायर हुए हैं। “अब तक 17 मुकदमे अलग-अलग जगहों पर दायर हो चुके हैं,” उन्होंने बताया।

मीडिया और बहुलता पर टिप्पणी

न्यायमूर्ति मुरलीधर ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वह लगातार “हिंदू-मुस्लिम सवालों” पर जोर देती है, जबकि भारत की असली ताकत उसकी बहुलता में है।
राम जन्मभूमि फैसले के बारे में उन्होंने कहा, “हम भूल जाते हैं कि हमारा देश मिश्रित संस्कृति वाला है… बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद की स्थिति, अदालतों के संदर्भ में, निराशाजनक रही है… फैसले में जो कहा गया और जो अंत में तय हुआ, वह तार्किक रूप से मेल नहीं खाता।”

READ ALSO  'खुलासा' बयान के 'लीक' होने पर 2020 दंगों के आरोपियों की याचिका पर सुनवाई से हाईकोर्ट जज ने किया इनकार

पूर्व CJI चंद्रचूड़ पर टिप्पणी

पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा, “यह बिना लेखक वाला फैसला था, लेकिन लेखक ने खुद कहा कि उन्होंने फैसला सुनाने से पहले देवता से परामर्श किया।”

विविधता पर जोर और हिजाब मामले का उल्लेख

उन्होंने कहा, “भारत की आबादी जितनी विविध है उतनी ही आस्थावान भी… हम कभी एक संस्कृति, एक भाषा या एक धर्म नहीं थे और न ही हो सकते हैं।”
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने हिजाब मामले में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की राय से अपनी सहमति भी जताई।

READ ALSO  अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में शांति और प्रगति का अभूतपूर्व युग देखा गया, सड़क पर हिंसा अतीत की बात हो गई: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles