सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में अपराध करने वाले विदेशी नागरिक ज़मानत मिलने के बाद फरार न हो सकें, इसके लिए केंद्र सरकार को ठोस नीति बनाने पर विचार करना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे बताया गया कि एक नाइजीरियाई नागरिक, जिस पर धोखाधड़ी का आरोप है, ज़मानत कूदकर फरार हो गया है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 26 अगस्त को सुनवाई के दौरान यह भी गौर किया कि भारत और नाइजीरिया के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है। ऐसे में आरोपी को वापस लाना लगभग असंभव है।
मामला नाइजीरियाई नागरिक एलेक्स डेविड से जुड़ा है, जिस पर धोखाधड़ी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत कई आरोप हैं। झारखंड हाईकोर्ट ने मई 2022 में उसे ज़मानत दी थी, लेकिन 4 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।

हालांकि, इस बीच डेविड ज़मानत कूदकर फरार हो गया। इस पर शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से ऐसे मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों पर सवाल किया। केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि विदेशों में जांच, आपसी कानूनी सहयोग, पत्र रोगेटरी और न्यायिक दस्तावेजों की तामील जैसी प्रक्रियाओं के लिए दिशानिर्देश मौजूद हैं, लेकिन प्रत्यर्पण संधि न होने के कारण कार्रवाई बाधित होती है।
विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि बिना संधि के नाइजीरिया अपने नागरिक का प्रत्यर्पण करने की संभावना कम है, हालांकि “पारस्परिक सहयोग” के आधार पर अनुरोध भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने डेविड की ज़मानत रद्द करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि मामला लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। अदालत ने केंद्र को सुझाव दिया कि वह इस विषय पर ठोस नीति बनाए ताकि विदेशी नागरिक अपराध करने के बाद न्याय प्रक्रिया से बचकर भाग न सकें।