सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एल्गार परिषद–माओवादी लिंक मामले के आरोपी अधिवक्ता सुरेंद्र गडलिंग की जमानत अर्जी पर सुनवाई को 17 सितंबर तक टाल दिया। यह निर्णय अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू द्वारा समय मांगे जाने के बाद लिया गया।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह आदेश पारित किया, हालांकि गडलिंग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कहा कि गडलिंग की अर्जी 2023 से लंबित है और वे बिना आरोप तय हुए ही छह साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं। ग्रोवर ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी जमानत अर्जी 11 बार स्थगित हो चुकी है।
यह मामला पहले जस्टिस एम.एम. सुंधरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध था, लेकिन जस्टिस सुंधरेश ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने इसे 4 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया था। ग्रोवर ने इससे पहले 8 अगस्त को सीजेआई के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की थी।

इससे पहले 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने गडलिंग और सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत अर्जी तथा कार्यकर्ता महेश राउत को बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली जमानत को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर भी सुनवाई स्थगित कर दी थी। राउत की जमानत पर एनआईए की आपत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।
अभियोजन पक्ष का कहना है कि गडलिंग ने माओवादियों को गोपनीय जानकारी, संवेदनशील क्षेत्रों के नक्शे और अन्य सहयोग उपलब्ध कराया। उन पर फरार आरोपियों के साथ साजिश रचने, माओवादी आंदोलन को समर्थन देने, सुरजगढ़ खदान परियोजना का विरोध कराने और स्थानीय लोगों को आंदोलन से जुड़ने के लिए भड़काने का आरोप है।
गडलिंग पर गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज है।
एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एक सम्मेलन से जुड़ा है। आरोप है कि इस सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों और प्रस्तुतियों के कारण 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गई थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि वे कबीर कला मंच (KKM) की सक्रिय सदस्य थीं और परिषद में उकसावे वाले नारे लगाए गए थे। एनआईए का दावा है कि केकेएम, भाकपा (माओवादी) का मुखौटा संगठन है।
यह मामला अब भी लंबित है और कई आरोपी वर्षों से ट्रायल शुरू हुए बिना ही जेल में बंद हैं।