दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को 1984 सिख विरोधी दंगे से जुड़े एक मामले में चार दशक पुराने रिकॉर्ड के पुनर्निर्माण के लिए ट्रायल कोर्ट को चार और सप्ताह का समय दिया। अदालत ने कहा कि पीड़ितों और समाज को निष्पक्ष जांच और न्याय पाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश तब दिया जब यह पाया गया कि ट्रायल कोर्ट ने अभी तक 11 अगस्त को दिए गए निर्देश के अनुसार विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा कि वह चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करे और मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को तय की। आदेश की प्रति तिस हजारी अदालत के जिला जज (मुख्यालय) को भी भेजने के निर्देश दिए गए।
यह मामला गाज़ियाबाद के राज नगर में 1 नवंबर 1984 को हुई घटना से जुड़ा है, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के एक दिन बाद हुई थी। तीन महिलाओं ने आरोप लगाया था कि उनके पति और बेटे को जिंदा जला दिया गया।

1986 में, ट्रायल कोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोक्खर और चार अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि, बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान (suo motu) लिया और पाया कि शुरुआती जांच और कार्यवाही “जल्दबाज़ी” में की गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रायल रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण नहीं हो जाता, तब तक यह आकलन संभव नहीं है कि 1986 में दिए गए बरी करने के आदेश सही थे या नहीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया दोनों संबंधित मामलों के लिए पूरी की जानी चाहिए ताकि सच्चाई सामने लाई जा सके और न्याय सुनिश्चित हो।