सुप्रीम कोर्ट ने बहाल किया नाबालिग से दुष्कर्म के दोषियों की सजा, कहा– ‘बियॉन्ड रीज़नेबल डाउट’ सिद्धांत के गलत प्रयोग से अपराधी बच निकलते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में दो आरोपियों की सजा बहाल करते हुए कहा कि ‘बियॉन्ड रीज़नेबल डाउट’ (संदेह से परे) सिद्धांत के गलत प्रयोग के कारण असली अपराधी अक्सर कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे फैसले समाज की सुरक्षा भावना को चोट पहुँचाते हैं और आपराधिक न्याय व्यवस्था पर कलंक हैं।

न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि अक्सर निचली अदालतें मामूली विरोधाभासों और कमियों को “संदेह” मानकर बरी कर देती हैं, जिससे “ढीले-ढाले बरी” हो जाते हैं और गंभीर अपराधों के दोषी छूट जाते हैं।

अदालत ने कहा, “जब भी कोई असली अपराधी संदेह का लाभ पाकर छूट जाता है, तो यह समाज की सुरक्षा भावना के खिलाफ विद्रोह जैसा है और पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली पर धब्बा है।”

Video thumbnail

बिहार के भोजपुर जिले में 2016 में एक नाबालिग लड़की गर्भवती पाई गई। उसने बताया कि दो आरोपियों ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। प्राथमिकी दर्ज कर जांच की गई और आरोपपत्र दाखिल हुआ। ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी मानते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

हालाँकि, सितंबर 2024 में पटना हाईकोर्ट ने अभियोजन के साक्ष्यों में विरोधाभास और पीड़िता की आयु को लेकर संदेह जताते हुए आरोपियों को बरी कर दिया। पीड़िता के पिता ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘संदेह से परे’ सिद्धांत का अर्थ हर तरह के संदेह से नहीं है। अदालत ने जोर दिया कि—

  • सबूतों पर: “कोर्ट में कभी भी परफेक्ट सबूत नहीं होते। बल्कि, सबूतों की परफेक्शन अक्सर घड़ने या सिखाने की ओर इशारा करती है।”
  • सामाजिक संदर्भ पर: ग्रामीण इलाकों में शैक्षिक और पहचान दस्तावेजों में विसंगतियाँ असामान्य नहीं हैं। अदालतों को ऐसे मामलों में समाज की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखना चाहिए।
  • अपील पर: ट्रायल कोर्ट पूरा ढाँचा नींव से तैयार करता है। कुछ गलतियाँ स्वाभाविक हैं, लेकिन अपीलीय अदालत को यह देखना चाहिए कि क्या वे गलतियाँ वास्तव में फैसले को प्रभावित करती हैं।
READ ALSO  SC Directs Union Government to Pay Rs 10 Lakh Compensation To Man Who Spent 14 years In Pakistan Jail, Accused of Being Indian Spy

पीठ ने कहा कि महिलाओं, बच्चों और हाशिये पर खड़े तबकों से जुड़े अपराधों में अदालतों को विशेष संवेदनशीलता बरतनी चाहिए ताकि विधायिका द्वारा बनाए गए सुरक्षा प्रावधान वास्तविक रूप से पीड़ितों तक पहुँच सकें।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बहाल करते हुए दोनों आरोपियों को दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया ताकि वे अपनी उम्रकैद की सजा पूरी कर सकें।

READ ALSO  Questions of Constitutional Validity Cannot be Dealt With in a Cryptic and Casual Manner: Supreme Court
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles