वैवाहिक विवादों में व्यभिचार का पता लगाने के लिए जीवनसाथी की मोबाइल लोकेशन की मांग कर सकती है अदालत: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के उपयोग पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि व्यभिचार (Adultery) के आरोपों की सच्चाई का पता लगाने के लिए अदालत जीवनसाथी के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDRs) और टावर लोकेशन डेटा पेश करने का आदेश दे सकती है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि ऐसा निर्देश देना “रोविंग एंड फिशिंग इंक्वायरी” (अटकलबाजी पर आधारित जांच) नहीं है, बल्कि यह सहयोगी परिस्थितिजन्य साक्ष्य इकट्ठा करने का एक वैध तरीका है।

कोर्ट ने निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार और निजता के मौलिक अधिकार के बीच संतुलन साधते हुए यह भी पुष्टि की कि व्यभिचार के आधार पर दायर तलाक की कार्यवाही में कथित प्रेमी या प्रेमिका को एक आवश्यक पक्ष बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने सबूतों के दायरे को बढ़ाते हुए होटल बुकिंग के विशिष्ट रिकॉर्ड को भी शामिल करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह फैसला उन अपीलों के एक समूह पर आया है, जो एक पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर दायर तलाक की याचिका से संबंधित थीं। पत्नी ने एक अन्य महिला को सह-प्रतिवादी बनाते हुए आरोप लगाया था कि उसके पति का उस महिला के साथ व्यभिचार का संबंध था।

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इससे पहले, एक फैमिली कोर्ट ने सह-प्रतिवादी महिला की मामले से अपना नाम हटाने की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने पत्नी के अनुरोध पर पति और सह-प्रतिवादी दोनों के CDRs और टावर लोकेशन डेटा पेश करने की अनुमति दी थी, और वित्तीय दस्तावेजों को आंशिक रूप से पेश करने का आदेश दिया था। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने होटल बुकिंग और अन्य रिकॉर्ड की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह एक अटकलबाजी पर आधारित जांच होगी। इसी आदेश को तीनों पक्षों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पक्षों की दलीलें

सह-प्रतिवादी (कथित प्रेमिका) और पति ने दलील दी कि टावर लोकेशन डेटा का खुलासा करने का निर्देश देना उनकी निजता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है, जिसकी गारंटी सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी मामले में दी है। उन्होंने तर्क दिया कि व्यभिचार के विशिष्ट आरोपों के बिना, ऐसा अनुरोध उनके निजी जीवन में एक अस्वीकार्य हस्तक्षेप के समान है।

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इसके विपरीत, पत्नी ने तर्क दिया कि व्यभिचार स्वाभाविक रूप से एक गुप्त कार्य है और इसे सीधे सबूतों से साबित करना मुश्किल है। उसने कहा कि CDRs और टावर लोकेशन डेटा से सामने आने वाले यात्रा और संचार के पैटर्न जैसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य, मामले के लिए महत्वपूर्ण थे। उसने जोर देकर कहा कि इन डेटा और होटल रिकॉर्ड्स के लिए उसका अनुरोध निष्पक्ष सुनवाई के लिए आवश्यक था।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

हाईकोर्ट ने प्रतिस्पर्धी अधिकारों और प्रक्रियात्मक कानूनों का विस्तृत विश्लेषण किया।

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1. CDRs और टावर लोकेशन डेटा पेश करने पर: कोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष इलेक्ट्रॉनिक लोकेशन डेटा की स्वीकार्यता पर था। कोर्ट ने निजता के अधिकार को स्वीकार किया लेकिन कहा कि यह असीमित नहीं है और निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करने के लिए इसे सीमित किया जा सकता है। फैसले में कहा गया है, “वैवाहिक विवादों में जहां व्यभिचार का आरोप लगाया जाता है, अदालतों ने लगातार यह माना है कि सबूत अक्सर परिस्थितिजन्य हो सकते हैं, और साथ रहने, होटलों में रुकने या संचार के पैटर्न जैसे सबूत प्रासंगिक परिस्थितियां हो सकते हैं।”

पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि CDRs और टावर लोकेशन डेटा “तटस्थ व्यावसायिक रिकॉर्ड” हैं जो सीधे तौर पर मामले से संबंधित हैं। कोर्ट ने कहा कि इन्हें पेश करने का आदेश देना “अटकलबाजी पर आधारित जांच” नहीं था, बल्कि यह पत्नी के आरोपों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ था। निजता की सुरक्षा के लिए, कोर्ट ने निर्देश दिया कि डेटा को एक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया जाए।

2. कथित प्रेमिका को पक्ष बनाने पर: कोर्ट ने पुष्टि की कि कथित प्रेमी या प्रेमिका एक आवश्यक पक्ष है। इसका कारण प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत (ऑडी अल्टरम पार्टेम) है, जिसके अनुसार जिस व्यक्ति पर व्यभिचार जैसे गंभीर आरोप लगते हैं, उसे सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे उसकी प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ता है।

3. होटल और यात्रा रिकॉर्ड की खोज पर: फैमिली कोर्ट से असहमत होते हुए, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पत्नी का होटल बुकिंग और यात्रा रिकॉर्ड के लिए अनुरोध “फिशिंग इंक्वायरी” नहीं था। मिसालों का हवाला देते हुए, पीठ ने जोर दिया कि ऐसे रिकॉर्ड व्यभिचार के मामलों में महत्वपूर्ण परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं और पति को गोपनीयता की सुरक्षा के साथ उन्हें पेश करने का निर्देश दिया।

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4. वित्तीय दस्तावेजों को पेश करने पर: हाईकोर्ट ने पति को प्रासंगिक वित्तीय रिकॉर्ड पेश करने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, क्योंकि ये पत्नी के भरण-पोषण के दावों के लिए प्रासंगिक थे।

अंतिम निर्देश

हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्देशों के साथ अपीलों का निपटारा किया:

  • पति के CDRs और पति और सह-प्रतिवादी दोनों के टावर लोकेशन डेटा को प्राप्त कर फैमिली कोर्ट में एक सीलबंद लिफाफे में रखा जाए।
  • पति द्वारा निर्दिष्ट वित्तीय और होटल बुकिंग रिकॉर्ड पेश किए जाएं।
  • दुरुपयोग को रोकने के लिए सभी दस्तावेजों का निरीक्षण अदालत की निगरानी में किया जाए।

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