इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार की स्कूल पेयरिंग नीति पर अंतरिम आदेश को बढ़ाते हुए सीतापुर ज़िले में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश 1 सितम्बर तक जारी रखा।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार को यह आदेश भी दिया कि वह वह सरकारी आदेश रिकॉर्ड पर लाए, जिसके तहत एक किलोमीटर से कम दूरी पर स्थित और 50 से अधिक छात्रों वाले स्कूलों को पेयरिंग से बाहर रखने का निर्णय लिया गया था।
यह आदेश मास्टर नितेश कुमार और अन्य द्वारा दायर विशेष अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया गया। इससे पहले 24 जुलाई को अदालत ने स्कूल पेयरिंग से संबंधित कार्यवाही पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था और कहा था कि सरकार द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों में कुछ विसंगतियाँ पाई गई हैं।

योगी आदित्यनाथ सरकार ने जून में “स्कूल पेयरिंग” नीति की घोषणा की थी, जिसके तहत 50 से कम छात्रों वाले 10,000 से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का नज़दीकी स्कूलों में विलय किया जाना है। सरकार का तर्क है कि यह कदम शैक्षिक ढाँचे को मजबूत करने, शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और शिक्षा व्यवस्था को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप बनाने के लिए आवश्यक है।
हालाँकि, इस नीति ने प्रदेशभर में राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा कर दिया है। आलोचकों का कहना है कि यह ग्रामीण और हाशिये पर बसे इलाकों में सरकारी स्कूलों को बंद करने की अप्रत्यक्ष कोशिश है। इसके चलते बच्चों की शिक्षा तक पहुँच बाधित हो सकती है और लंबी दूरी तय करने की मजबूरी के कारण ड्रॉपआउट दर बढ़ने का खतरा है।
इस नीति के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं, अदालतों में याचिकाएँ दायर की गई हैं और विधानसभा में तीखी बहसें हुई हैं। विपक्षी दलों ने सरकार पर सार्वजनिक शिक्षा को कमजोर करने का आरोप लगाया है, जबकि सरकार का कहना है कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए है।
अब यह मामला 1 सितम्बर को फिर से सुना जाएगा, जब राज्य सरकार से संबंधित आदेश प्रस्तुत करने की अपेक्षा की गई है।