सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और किशोर प्रेम संबंधों में अंतर करने की आवश्यकता बताई

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह रेखांकित किया कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों और वयस्कता की दहलीज पर खड़े किशोरों के वास्तविक प्रेम संबंधों के मामलों में अंतर किया जाना जरूरी है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत सहमति की आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि समाज की वास्तविकताओं को ध्यान में रखना होगा।

सह-शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा: “अब वे एक-दूसरे के प्रति भावनाएं विकसित करते हैं। क्या आप कह सकते हैं कि प्रेम करना अपराध है? हमें बलात्कार जैसे आपराधिक कृत्य और ऐसे मामलों के बीच फर्क करना होगा।”

पीठ ने कहा कि जब ऐसे मामले वास्तविक प्रेम संबंधों के हों और युवा शादी करना चाहते हों, तो उन्हें अपराध की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि अक्सर ऐसे मामलों में लड़कियों के माता-पिता शिकायत दर्ज करा देते हैं और लड़के को जेल भेज दिया जाता है, जिससे दोनों पर गहरा आघात पड़ता है। “यह समाज की कठोर सच्चाई है,” न्यायालय ने कहा और उल्लेख किया कि कई बार भागकर शादी करने के मामलों को भी पॉक्सो केस के जरिए ढक दिया जाता है।

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याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस. फूलका ने ऐसे मामलों में सुरक्षा उपायों की मांग की। अदालत ने कहा कि पुलिस को यह देखना होगा कि मामला अपहरण या तस्करी का है या वास्तविक प्रेम संबंध का।

फूलका ने पीठ को अवगत कराया कि सहमति की आयु से संबंधित मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ के समक्ष भी लंबित है। अदालत ने सुनवाई 26 अगस्त तक स्थगित कर दी और फूलका को निर्देश दिया कि वे संबंधित शीर्ष अदालत के आदेश रिकॉर्ड पर रखें।

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सरकार ने हाल ही में एक अलग मामले में लिखित जवाब दाखिल कर सहमति की आयु 18 वर्ष बनाए रखने का जोरदार समर्थन किया है। केंद्र ने कहा कि यह निर्णय “विचारित, सुव्यवस्थित और सुसंगत” नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है।

सरकार का कहना है कि सहमति की आयु कम करना या किशोर प्रेम के नाम पर अपवाद बनाना “कानूनी दृष्टि से असंगत और खतरनाक” होगा।

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सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां एक बार फिर इस बहस को सामने लाती हैं कि बच्चों की सुरक्षा संबंधी कानूनों और किशोर प्रेम संबंधों की सामाजिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।

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