सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग (NCPCR) और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें यह मान्यता दी गई थी कि मुस्लिम लड़कियां यौवनावस्था (puberty) प्राप्त करने के बाद स्वयं विवाह कर सकती हैं।
पीठ की टिप्पणी
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि इन आयोगों का ऐसे व्यक्तिगत मामलों में “कोई अधिकार क्षेत्र (locus standi)” नहीं है। पीठ ने टिप्पणी की—“यह अजीब है कि बच्चों की रक्षा के लिए बना आयोग उन दो बच्चों की सुरक्षा करने वाले आदेश को चुनौती दे रहा है… इन दंपतियों को अकेला छोड़ दीजिए।”
हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
याचिकाओं की खारिजी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का जनवरी 2023 का अंतरिम आदेश भी समाप्त हो गया, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट के फैसले को नजीर (precedent) के रूप में न माना जाए। हाईकोर्ट ने पहले ही यह माना था कि मुस्लिम लड़कियां लगभग 15 वर्ष की आयु में यौवनावस्था प्राप्त करने के बाद अपनी इच्छा से विवाह कर सकती हैं।

किशोर संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट की राय
सुनवाई के दौरान पीठ ने पॉक्सो (POCSO) कानून के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई, खासकर सहमति-आधारित किशोर संबंधों में। अदालत ने सख्त लहजे में कहा—“प्यार अपराध नहीं है और इसे अपराध नहीं बनाया जा सकता।” अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में किशोरों पर मुकदमा चलाना उनके जीवन पर स्थायी आघात डालता है।
न्यायमूर्तियों ने यह भी कहा कि कई बार माता-पिता सम्मान (honour) के नाम पर इस कानून का सहारा लेते हैं। पीठ ने कहा—“ऐसे कई मामले माता-पिता द्वारा दायर किए जाते हैं। यदि हर ऐसे मामले को अपराध मानना शुरू कर दें, तो ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं बढ़ेंगी।” अदालत ने पुलिस से अपील की कि वे वास्तविक यौन अपराध और सहमति-आधारित किशोर संबंधों में अंतर करें।
सहमति की आयु पर व्यापक बहस
यह कार्यवाही ऐसे समय हो रही है जब पॉक्सो के तहत सहमति की न्यूनतम आयु—वर्तमान में 18 वर्ष—पर व्यापक बहस चल रही है। कई याचिकाओं में किशोर सहमति वाले मामलों में इस प्रावधान में ढील की मांग की गई है, लेकिन केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है। सरकार का कहना है कि कोई भी छूट बच्चों की सुरक्षा कमजोर कर सकती है और अपराधियों को बढ़ावा देगी।