गौहाटी हाईकोर्ट ने असम के गोलाघाट ज़िले के दोयांग और नाम्बोर आरक्षित वनों में रह रहे परिवारों को सात दिनों के भीतर क्षेत्र खाली करने का निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि तय समय सीमा तक परिवार स्वेच्छा से नहीं हटते हैं, तो राज्य सरकार उन्हें बलपूर्वक हटा सकती है।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधुरी की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाया। अदालत 74 निवासियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए नोटिसों को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि नोटिस असम भूमि एवं राजस्व विनियमन, 1886, असम भूमि नीति, 2019 तथा सुप्रीम कोर्ट के 13 दिसंबर 2024 के आदेश के विपरीत हैं।
खंडपीठ ने उल्लेख किया कि 5 अगस्त को ही याचिकाकर्ताओं को 10 दिन का समय दिया गया था ताकि वे अपने भूमि अधिकारों का दस्तावेज़ी सबूत पेश करें या वन क्षेत्र खाली करें। न्यायालय ने कहा, “अदालत पहले ही पर्याप्त समय दे चुकी है, अब और विस्तार नहीं दिया जाएगा।”

साथ ही, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भविष्य में निष्कासन प्रक्रिया के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल अपनाने का निर्देश दिया। इसके अनुसार, सरकार को कम से कम 15 दिन का नोटिस और उसके बाद अतिरिक्त 15 दिन का समय लोगों को पुनर्वास या बाहर जाने के लिए देना होगा।
अदालत ने आरक्षित वनों की पारिस्थितिकीय संतुलन की रक्षा पर जोर देते हुए राज्य सरकार को “उचित निगरानी तंत्र” बनाने का निर्देश दिया। इसमें प्रवेश द्वारों पर सुरक्षा व्यवस्था, छिद्रयुक्त सीमाओं पर कांटेदार तार लगाना और कार्यशील चेकपोस्ट स्थापित करना शामिल है।
खंडपीठ ने कहा कि अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए और यदि अवैध प्रवेश पाया जाता है तो वन विभाग सहित संबंधित अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए। अदालत ने समय-समय पर समीक्षा और आरक्षित क्षेत्रों में निरंतर निगरानी की भी सिफारिश की, ताकि दोबारा अतिक्रमण न हो।