सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी करदाता (असेसी) को केंद्रीय या राज्य कर प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए समन (Summons) और शो कॉज नोटिस का पालन करना और उसका उत्तर देना अनिवार्य है।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने 14 अगस्त को दिए एक फैसले में केंद्रीय और राज्य जीएसटी प्राधिकरणों के बीच दोहराव से बचने के लिए दिशा-निर्देश तय किए। अदालत ने कहा कि केवल समन जारी होने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि निर्णायक कार्यवाही शुरू हो चुकी है, लेकिन समन पाने वाले करदाता को पहले चरण में उसका पालन अवश्य करना होगा।
करदाता का कर्तव्य
अदालत ने स्पष्ट किया कि आयकर अधिनियम, 1961 के तहत “असेसी” वह व्यक्ति या संस्था है जिस पर कर भुगतान या अन्य वित्तीय दायित्वों की कानूनी जिम्मेदारी है। ऐसे करदाता को समन मिलने पर उपस्थित होना और आवश्यक जवाब दाखिल करना होगा। यदि करदाता को यह पता चलता है कि उसी विषय पर पहले से किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा जांच चल रही है, तो उसे तत्काल लिखित रूप में दूसरे प्राधिकरण को सूचित करना होगा।

कर प्राधिकरणों के बीच समन्वय
पीठ ने निर्देश दिया कि करदाता की ऐसी सूचना मिलने पर केंद्रीय और राज्य कर प्राधिकरण आपस में संवाद करें और दावे की सत्यता की जांच करें। अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया दोहराव वाली कार्यवाही से बचाएगी, विभागीय संसाधनों का संरक्षण करेगी और जांच को तार्किक बनाएगी।
“यदि करदाता का दावा असत्य पाया जाता है और दोनों जांचें अलग-अलग विषयों पर केंद्रित हैं, तो संबंधित प्राधिकरण करदाता को लिखित रूप में यह स्पष्ट करेंगे कि मामला अलग-अलग विषयों से जुड़ा है और कारण भी बताएंगे,” अदालत ने कहा।
दोहरी कार्यवाही से सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी कर देयता पर पहले से शो कॉज नोटिस जारी है, तो उसी विषय पर जारी दूसरा नोटिस रद्द कर दिया जाएगा। यदि पाया जाता है कि एक ही विषय पर दो जांचें चल रही हैं, तो संबंधित प्राधिकरण आपस में तय करेंगे कि जांच कौन आगे बढ़ाएगा, और दूसरा प्राधिकरण अपने पास उपलब्ध सभी दस्तावेज व जानकारी नामित प्राधिकरण को सौंप देगा।
मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला आर्मर सिक्योरिटी नामक एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी की याचिका पर आया। कंपनी दिल्ली जीएसटी प्राधिकरण के साथ पंजीकृत है और उस पर कर देनदारी तथा दोहरे जांच-प्रक्रिया से संबंधित विवाद चल रहा था।
अदालत का यह फैसला स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है कि केंद्रीय और राज्य कर प्राधिकरणों के बीच समन्वय कैसे हो और साथ ही यह भी दोहराता है कि करदाता समन या नोटिस का पालन करने से नहीं बच सकते।