सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात स्थित वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र वंतारा में रखे गए बंदी हाथियों को लौटाने के लिए निगरानी समिति गठित करने की मांग वाली याचिका को “पूरी तरह अस्पष्ट” करार दिया।
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पी. बी. वरले की पीठ ने स्वयं याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता सी. आर. जया सुकिन से कहा कि वे वंतारा पर आरोप लगा रहे हैं, जबकि उसे पक्षकार ही नहीं बनाया गया है। पीठ ने कहा, “आप ऐसे पक्षों पर आरोप लगा रहे हैं जो यहां मौजूद ही नहीं हैं। आपने उन्हें प्रतिवादी नहीं बनाया। आप उन्हें याचिका में शामिल कीजिए और फिर हमारे पास आइए, हम देखेंगे।” अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त के लिए तय की।
शीर्ष अदालत ने सुकिन की याचिका के साथ एक अन्य समान याचिका को भी संलग्न कर दिया। यह याचिका इससे पहले प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेखित की गई थी।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि वंतारा में बंदी हाथियों के स्थानांतरण में कानून और नियमों का उल्लंघन हुआ, राज्यों का प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा, कुछ अधिकारियों से समझौता किया गया और कुछ को धमकाया गया। इसमें दावा किया गया है कि मंदिरों और निजी मालिकों से हाथियों को जबरन ले जाया गया और अन्य जंगली जानवरों व पक्षियों — जिनमें कुछ लुप्तप्राय प्रजातियां भी शामिल हैं — को बचाव और पुनर्वास के नाम पर “तस्करी” कर वंतारा लाया गया।
याचिका में हाथियों को उनके मूल मालिकों को लौटाने और सभी जंगली जानवरों व पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने की मांग के साथ-साथ अदालत की निगरानी में जांच समिति गठित करने की अपील की गई है।