मुख्य न्यायाधीश गवई: ‘मुख्य न्यायाधीश समान पदों में प्रथम, अन्य न्यायाधीशों से श्रेष्ठ नहीं’

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण आर. गवई ने मंगलवार को कहा कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख के पास अन्य 33 न्यायाधीशों की तुलना में कोई अतिरिक्त न्यायिक शक्ति नहीं है और वह भी न्यायिक शिष्टाचार एवं अनुशासन के सिद्धांतों से समान रूप से बंधे हैं।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया के साथ पीठ की अध्यक्षता करते हुए, कहा—
“मुख्य न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों से श्रेष्ठ नहीं हैं। वह इस न्यायालय के अन्य 33 न्यायाधीशों की तरह ही न्यायिक शक्ति का प्रयोग करते हैं। मुख्य न्यायाधीश केवल समान पदों में प्रथम हैं।”

‘समान पीठ के आदेश को पहली अदालत की पीठ बदल सकती है?’

पीठ केंद्र सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें 26 अप्रैल 2023 के ऋतु छाबड़िया बनाम भारत संघ फैसले को वापस लेने की मांग की गई थी। उस फैसले में कहा गया था कि यदि अधूरी चार्जशीट दाखिल की जाती है तो आरोपी को डिफॉल्ट बेल का अधिकार है। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार के इस फैसले के बाद देशभर में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में जमानत अर्जियां दाखिल हुई थीं।

Video thumbnail

केंद्र की दलील एक मई 2023 के आदेश पर आधारित थी, जिसे तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने पारित किया था। इस आदेश ने 26 अप्रैल के फैसले के प्रभाव को रोक दिया था, जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने “व्यापक असर” की आशंका जताई थी।

READ ALSO  Consider Enacting a Law on Bail to Expedite the Release of Accused Persons- SC Directs Centre

इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई की पीठ ने सवाल उठाया—
“क्या सिर्फ इसलिए कि कोई पीठ पहली अदालत में बैठती है, उसे समान पीठ के आदेश को बदलने का अधिकार मिल जाता है? हम न्यायिक शिष्टाचार और अनुशासन में विश्वास करते हैं। अगर इसे अनुमति दी जाए तो एक पीठ दूसरी पीठ के आदेश में हस्तक्षेप कर सकती है सिर्फ इसलिए कि उसे वह आदेश पसंद नहीं है।”

सरकार ने बताया ‘देशव्यापी असर’

मेहता ने दलील दी कि ऋतु छाबड़िया फैसले के “अखिल भारतीय परिणाम” होंगे, क्योंकि करीब 50 लंबित मामलों में आरोपी यह तर्क दे रहे हैं कि चार्जशीट में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173(8) का उल्लेख होने का मतलब है कि आगे की जांच बाकी है, जिससे चार्जशीट अधूरी हो जाती है और उन्हें डिफॉल्ट बेल मिलनी चाहिए।

READ ALSO  भारतीय मूल की शालीना को बाइडन ने बनाया फेडरल जज

मेहता ने कहा, “यह अराजकता पैदा कर सकता है,” और आग्रह किया कि कानून स्पष्ट करने के लिए विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर सुनवाई की जाए। इस पर पीठ ने पूछा—
“किसी स्वतंत्र मामले में आदेश वापस लेने का सवाल कहां से आया? ऋतु छाबड़िया मामले में आपकी पुनर्विचार याचिका का क्या हुआ?”
मेहता ने बताया कि 31 जुलाई 2025 को पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई थी।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने संकेत दिया कि इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ गठित की जाएगी।

विवाद का मूल मुद्दा

26 अप्रैल 2023 के फैसले में कहा गया था कि अधूरी जांच के साथ चार्जशीट दाखिल करना, या पूरक चार्जशीट का उपयोग कर CrPC की धारा 167(2) के तहत आरोपी के वैधानिक अधिकार को निष्प्रभावी करना, आरोपी को डिफॉल्ट बेल से वंचित नहीं कर सकता। इस प्रावधान के तहत, यदि जांच 60 दिनों (गंभीर मामलों में 90 दिनों) के भीतर पूरी नहीं होती तो आरोपी को जमानत का अधिकार है।

यह फैसला ऋतु छाबड़िया की याचिका पर आया था, जिनके पति पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज था। सीबीआई ने उन्हें केवल पूरक चार्जशीट में नामित किया, जबकि अंतिम रिपोर्ट अधूरी रही।

READ ALSO  हीरो इलेक्ट्रिक वाहन ब्रांड' का दावा पहुँचा हाई कोर्ट- जानिए क्यूँ

सरकार और प्रवर्तन निदेशालय (ED) का कहना है कि यह फैसला पहले के तीन-न्यायाधीशों के फैसलों—जैसे विपुल अग्रवाल बनाम गुजरात राज्य (2013)—से टकराता है और मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम की धारा 44 की व्याख्या (ii) जैसे प्रावधानों को कमजोर करता है, जो शिकायत दाखिल होने के बाद भी आगे की जांच की अनुमति देता है।

सरकार का यह भी तर्क है कि यह फैसला दिलीप दलमिया (2017) मामले में दिए गए बंधनकारी निर्णय की अनदेखी करता है, जिसमें कहा गया था कि यदि CrPC की धारा 167(2) का पालन हो रहा हो तो आगे की जांच के दौरान पुलिस कस्टडी दी जा सकती है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles