सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार को दी गई अंतरिम जमानत को रद्द कर दिया और उन्हें एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
यह आदेश मृतक पहलवान सागर धनखड़ के पिता द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा दी गई राहत को चुनौती दी गई थी।
पृष्ठभूमि
यह मामला 4 और 5 मई 2021 की दरमियानी रात दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में हुई घटना से संबंधित है। आरोप है कि सुशील कुमार और उनके कई सहयोगियों ने सागर धनखड़ और उसके दोस्तों का अपहरण किया, उन्हें स्टेडियम लाकर डंडों, हॉकी स्टिक और अन्य हथियारों से बेरहमी से पीटा। संपत्ति विवाद को लेकर हुए इस हमले में सागर धनखड़ की मौत हो गई, जबकि उसके दो दोस्त गंभीर रूप से घायल हुए।

घटना के बाद 23 मई 2021 को सुशील कुमार को गिरफ्तार किया गया और तब से वे न्यायिक हिरासत में हैं। अक्टूबर 2022 में दिल्ली की एक निचली अदालत ने सुशील कुमार और अन्य 17 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं — हत्या (§302), हत्या का प्रयास (§307), दंगा (§147, §148, §149), अवैध जमावड़ा, आपराधिक साजिश (§120B), अपहरण (§365) और डकैती (§395) — के तहत आरोप तय किए थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इससे पहले सुशील कुमार को उनकी पत्नी के ऑपरेशन के लिए मानवीय आधार पर अंतरिम जमानत दी थी। इसी आदेश को मृतक के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
पक्षकारों के तर्क
सागर धनखड़ के पिता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने गंभीर और संगीन आरोपों वाले मामले में जमानत देकर गलती की। उन्होंने कहा कि सुशील कुमार एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को धमकाकर मुकदमे को प्रभावित कर सकते हैं। याचिका में अपराध की निर्ममता को रेखांकित करते हुए कहा गया कि ऐसे जघन्य अपराध में जमानत देना समाज को गलत संदेश देगा।
वहीं, सुशील कुमार की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट का आदेश केवल मानवीय आधार पर, सीमित अवधि के लिए दिया गया था, क्योंकि उनकी पत्नी के ऑपरेशन के लिए उनकी मौजूदगी जरूरी थी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द करने वाली याचिका को उचित पाया। पीठ ने कहा कि किसी भी जमानत आवेदन पर निर्णय करते समय अपराध की प्रकृति और गंभीरता मुख्य विचार होना चाहिए।
अदालत ने नोट किया कि सुशील कुमार हत्या के मामले में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में आरोपी हैं और हाईकोर्ट ने राहत देते समय आरोपों की गंभीरता तथा निष्पक्ष सुनवाई पर संभावित खतरे को पर्याप्त महत्व नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे गंभीर अपराधों में जमानत देने के मानदंड और भी कड़े होने चाहिए।
पीठ ने माना कि आरोपी के खिलाफ लगे आरोप गंभीर हैं और हाईकोर्ट का अंतरिम जमानत देने का आदेश टिकाऊ नहीं है।
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुशील कुमार को आदेश दिया कि वे आदेश की तारीख से एक सप्ताह के भीतर संबंधित जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करें।