सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए एक मेडिकल अभ्यर्थी को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का जाति वैधता प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के दादा के स्वतंत्रता-पूर्व विद्यालयी अभिलेख में उनकी जाति “कोली महादेव” दर्ज है, जिसे अधिक प्रमाणिक महत्व दिया जाना चाहिए था और केवल अनुमानों के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने योगेश माधव मकळवाड द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। यह अपील बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के 23 जुलाई 2024 के उस फैसले के खिलाफ थी, जिसमें अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र जांच समिति द्वारा अपीलकर्ता और उसके पिता के प्रमाणपत्र रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
1943 में अपीलकर्ता के दादा जल्बा माल्बा मकळवाड को जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय, नारंगल, जिला नांदेड़ में प्रवेश मिला, जहां उनकी जाति “कोली महादेव” दर्ज की गई। अपीलकर्ता के चाचा (1975) और पिता (1979) के विद्यालयी अभिलेखों में भी यही प्रविष्टि थी। 2005 में अपीलकर्ता के विद्यालयी अभिलेख और 2010 में विद्यालय त्याग प्रमाणपत्र में भी जाति “कोली महादेव” ही दर्ज थी।

21 मई 2010 को महाराष्ट्र सरकार ने 2001 की जनगणना के आधार पर उन गांवों में कुछ योजनाएं लागू करने का परिपत्र जारी किया, जहां अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की आबादी 40% से अधिक थी। अपीलकर्ता का गांव भी पात्र गांवों की सूची में था।
2019 में NEET-UG परीक्षा में 720 में से 334 अंक प्राप्त करने के बाद, अपीलकर्ता ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए अपने जाति प्रमाणपत्र की शीघ्र जांच का अनुरोध किया। लेकिन 24 जून 2019 को जांच समिति ने अपीलकर्ता और उसके पिता के जाति दावे को अमान्य ठहराते हुए 1943 के विद्यालयी अभिलेख सहित अन्य अभिलेखों पर अविश्वास जताया और प्रमाणपत्र रद्द कर जब्त कर लिए। हाईकोर्ट ने समिति के इस निर्णय को सही ठहराया।
पक्षकारों के तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता उदय भास्कर दुबे ने अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया कि 1943 का विद्यालयी अभिलेख स्पष्ट रूप से जाति “कोली महादेव” दर्शाता है और यह स्वतंत्रता-पूर्व का दस्तावेज होने के कारण अधिक प्रमाणिक महत्व रखता है। समिति और हाईकोर्ट ने इस साक्ष्य को गलत तरीके से नज़रअंदाज़ किया।
राज्य की ओर से अधिवक्ता श्रीरंग बी. वर्मा और वरद किलोरे ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि 1943 का दस्तावेज संदिग्ध है क्योंकि हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट में संभावित हेरफेर पर निष्कर्ष स्पष्ट नहीं था। साथ ही, अपीलकर्ता परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में जानकारी न दे पाने के कारण ‘अफिनिटी टेस्ट’ में असफल रहा।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने Anand v. Committee for Scrutiny & Verification of Tribe Claims (2012) 1 SCC 113 का हवाला देते हुए कहा कि स्वतंत्रता-पूर्व के दस्तावेजों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए और ‘अफिनिटी टेस्ट’ का उपयोग केवल सहायक रूप से किया जा सकता है, न कि किसी दावे को अस्वीकार करने के एकमात्र आधार के रूप में।
1943 के विद्यालयी अभिलेख की प्रविष्टि को आवर्धक लेंस से देखने के बाद पीठ ने पाया कि “कोली महादेव” शब्द एक ही स्याही और हस्तलेख में लिखे गए हैं, जिससे “किसी प्रकार की हेराफेरी की कोई गुंजाइश नहीं” है। अपीलकर्ता के पिता और चाचा के बाद के अभिलेखों में भी यही जाति दर्ज थी।
कोर्ट ने कहा:
“स्वतंत्रता-पूर्व के दस्तावेज, जिसमें अपीलकर्ता के दादा जल्बा माल्बा मकळवाड के ‘कोली महादेव’ जनजाति से संबंधित होने का उल्लेख है, को अधिक प्रमाणिक महत्व दिया जाना चाहिए था। परंतु अनुमानों और धारणाओं के आधार पर इस दस्तावेज़ को अविश्वसनीय मान लिया गया।”
‘अफिनिटी टेस्ट’ पर पीठ ने Anand मामले में कही गई यह बात दोहराई कि प्रवासन, आधुनिकीकरण और मुख्यधारा में घुल-मिल जाने के कारण जनजातीय लोग नई सामाजिक आदतें अपना सकते हैं, और पारंपरिक रीति-रिवाज न बता पाने को दावे को खारिज करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
कोर्ट ने Maharashtra Adiwasi Thakur Jamat Swarakshan Samiti v. State of Maharashtra (2023) 16 SCC 415 का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि ‘अफिनिटी टेस्ट’ निर्णायक नहीं है।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने समिति और हाईकोर्ट के निष्कर्षों को कानूनन अस्थिर ठहराते हुए आदेश दिया:
- अपील स्वीकार की जाती है।
- हाईकोर्ट का 23 जुलाई 2024 का आदेश रद्द किया जाता है।
- यह घोषित किया जाता है कि अपीलकर्ता ‘कोली महादेव’ जनजाति से संबंधित है।
- जांच समिति छह सप्ताह के भीतर अपीलकर्ता को जाति वैधता प्रमाणपत्र जारी करे।