भूषण पावर के लिए JSW स्टील की ₹19,700 करोड़ की समाधान योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) के लिए JSW स्टील की ₹19,700 करोड़ की समाधान योजना से जुड़ी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में कंपनी, लेनदार समिति (CoC) और पूर्व प्रवर्तकों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की विशेष पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (CoC की ओर से), वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल (JSW स्टील की ओर से) और वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता (पूर्व प्रवर्तकों की ओर से) की दलीलें सुनीं।

यह सुनवाई उस समय दोबारा हुई जब 31 जुलाई को CJI के नेतृत्व वाली पीठ ने अपना 2 मई का फैसला वापस ले लिया था। उस फैसले में अदालत ने BPSL के परिसमापन का आदेश देते हुए JSW की समाधान योजना रद्द कर दी थी और CoC, समाधान पेशेवर तथा NCLT के कामकाज को IBC के “घोर उल्लंघन” के रूप में आंका था।

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मुख्य विवाद: EBITDA और विलंब ब्याज

मामले का केंद्रीय मुद्दा यह है कि समाधान अवधि के दौरान हुई कमाई — ब्याज, कर, मूल्यह्रास और अमोर्टाइजेशन से पहले की आय (EBITDA) — लेनदारों को मिलेगी या कंपनी के पास रहेगी। CoC ने ₹3,569 करोड़ EBITDA और ₹2,500 करोड़ विलंब ब्याज का दावा किया है।

कौल ने तर्क दिया कि न तो अनुरोध पत्र (RFRP) और न ही समाधान योजना में EBITDA साझा करने की कोई शर्त थी। JSW ने “जैसा है, जहां है” के आधार पर बोली लगाई थी, जिसमें कंपनी के लाभ और हानि दोनों स्वीकार किए गए थे। उन्होंने कहा कि योजना के कार्यान्वयन में देरी प्रवर्तन निदेशालय (ED) की संपत्ति जब्ती के कारण हुई, जिसे दिसंबर 2024 में ही हटाया गया।

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पूर्व प्रवर्तकों की आपत्तियां

ध्रुव मेहता ने आरोप लगाया कि JSW ने वादे के अनुसार कार्यशील पूंजी का निवेश नहीं किया और योजना लागू होने से पहले स्टील की बढ़ी कीमतों का फायदा उठाया। उन्होंने यह भी कहा कि NCLT से मंजूरी के बाद CoC की शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और अनुपालन संबंधी विवाद फिर से ट्रिब्यूनल में ले जाए जाने चाहिए।

CoC का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने पूर्व प्रवर्तकों पर कंपनी को “बरबादी की कगार” पर पहुंचाने का आरोप लगाते हुए इसे “संपत्ति हड़पने के सबसे गंभीर मामलों में से एक” बताया। उन्होंने EBITDA और विलंब ब्याज पर CoC के दावे को उचित ठहराया और कहा कि IBC की धारा 62 के तहत सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले तक CoC एक वैध निकाय बना रहता है।

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