सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने शुक्रवार को सेवानिवृत्ति से पहले एक भावुक विदाई समारोह के दौरान कहा, “मैं अपने हिंदुस्तान को मिस करूंगा।” उनकी यह टिप्पणी अदालत में उपस्थित वकीलों और न्यायाधीशों को भावविभोर कर गई।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली विदाई पीठ में न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया भी शामिल थे।
न्यायमूर्ति धूलिया ने बताया कि सुबह नाश्ते के वक्त उनकी पत्नी ने पूछा कि वह सबसे ज़्यादा क्या मिस करेंगे। “मैंने तुरंत जवाब दिया — मैं अपने हिंदुस्तान को मिस करूंगा। मेरी पत्नी थोड़ी चकित रह गईं। लेकिन मेरे लिए ‘हिंदुस्तान’ का मतलब है — देशभर से आने वाले वकील, विविध भाषाएं, संस्कृति और दृष्टिकोण। यही मेरा हिंदुस्तान है, जो हर सुबह मेरी अदालत में होता था,” उन्होंने कहा।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने न्यायमूर्ति धूलिया की गरिमा, ज्ञान और साहित्यिक अभिरुचि की सराहना करते हुए कहा, “उनके फैसले गहराई और संवेदनशीलता के प्रतीक रहे हैं। उन्होंने न्यायपालिका में सौम्यता और संतुलन का उदाहरण प्रस्तुत किया है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायमूर्ति धूलिया उन्हें अक्सर किताबें उपहार में दिया करते थे और साहित्य, थिएटर और गोल्फ के प्रति उनका लगाव उल्लेखनीय रहा है। “हम आपके योगदान के लिए आभारी हैं और दिल्ली में नवंबर के बाद और समय साथ बिताने की आशा करते हैं,” सीजेआई गवई ने कहा।
न्यायमूर्ति धूलिया ने सोमरसेट मॉम की 1915 की पुस्तक Of Human Bondage का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे उस उपन्यास में नायक पेड़ को आकाश की पृष्ठभूमि में देखना सीखता है, वैसे ही सुप्रीम कोर्ट में दलीलों को सुनकर उन्होंने गहराई से सोचना सीखा।
उन्होंने कहा, “आपकी दलीलें सुनना मेरे लिए सबसे सुंदर अनुभव रहा। मैं आप सबको और इन बहसों को हमेशा याद रखूंगा — और चाहूंगा कि आप भी मुझे कभी-कभी याद करें।”
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति धूलिया की सराहना करते हुए कहा कि वह हर मामले में मानवीय दृष्टिकोण को महत्व देते थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “उन्हें कभी कोई पूर्व धारणा नहीं होती थी और उन्होंने अपनी साहित्यिक रुचियों को कभी न्यायिक कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने दिया।”
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब मैं उत्तराखंड हाईकोर्ट में आपके सामने पहली बार पेश हुई थी, तब से आज तक आप बिल्कुल वैसे ही दिखते हैं।”
10 अगस्त 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति धूलिया एक प्रतिष्ठित सार्वजनिक सेवा परिवार से आते हैं। उनके पिता इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे, मां शिक्षिका थीं और दादा स्वतंत्रता सेनानी।
देहरादून, इलाहाबाद और लखनऊ में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1981 में स्नातक, फिर मॉडर्न हिस्ट्री में परास्नातक और 1986 में एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की और उत्तराखंड हाईकोर्ट की स्थापना के बाद वहीं चले गए, जहां 2008 में उन्हें न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।