सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दिल्ली की तीन निजी डिस्कॉम्स को 27,200 करोड़ रुपये का भुगतान चार साल में करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिल्ली की तीन निजी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) — बीएसईएस राजधानी (BRPL), बीएसईएस यमुना (BYPL) और टाटा पॉवर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (TPDDL) — को 27,200.37 करोड़ रुपये की बकाया राशि (रेगुलेटरी एसेट्स सहित कैरीइंग कॉस्ट) का भुगतान अधिकतम चार वर्षों के भीतर करने का आदेश दिया है। यह अवधि 1 अप्रैल 2024 से शुरू मानी जाएगी।

यह फैसला जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सुनाया, जिसमें कंपनियों द्वारा दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (DERC) की पूर्ववर्ती टैरिफ निर्धारण नीतियों को चुनौती दी गई थी। कंपनियों ने आरोप लगाया था कि आयोग के टैरिफ आदेशों के कारण उन्हें जो लागतें वसूलनी थीं, वे लंबित होती रहीं और अब उन्हें “रेगुलेटरी एसेट” के रूप में चुकता किया जाना है।

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कितनी है बकाया राशि?

मार्च 2024 तक, BRPL पर 12,993.53 करोड़ रुपये, BYPL पर 8,419.14 करोड़ रुपये और TPDDL पर 5,787.70 करोड़ रुपये बकाया हैं — कुल मिलाकर 27,200.37 करोड़ रुपये।

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रेगुलेटरी एसेट क्या होता है?

कोर्ट ने समझाया कि बिजली क्षेत्र में “रेगुलेटरी एसेट” एक अमूर्त संपत्ति होती है, जो तब बनती है जब वितरण कंपनी की लागतें मौजूदा टैरिफ से पूरी तरह वसूल नहीं हो पातीं। इस अंतर को आयोग भविष्य में वसूली के लिए मान्यता देता है।

जस्टिस नरसिम्हा ने 82 पन्नों का विस्तृत फैसला लिखते हुए कहा:

“यह वह हिस्सा है जो किसी वर्ष की टैरिफ गणना में शामिल नहीं किया जाता, लेकिन वितरण कंपनी को भविष्य में इसे वसूलने का अधिकार होता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?

पीठ ने रेगुलेटरी एसेट के निर्माण और निपटान को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए:

  • रेगुलेटरी एसेट वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) के 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए, जैसा कि विद्युत नियमों के नियम 23 में बताया गया है।
  • यदि रेगुलेटरी एसेट बनती है, तो उसे तीन वर्षों में समाप्त किया जाना चाहिए। वर्तमान बकाया को अधिकतम चार वर्षों में समाप्त करने का निर्देश दिया गया है, जो 1 अप्रैल 2024 से गिना जाएगा।
  • आयोग को स्पष्ट रोडमैप बनाना होगा, जिसमें कैरीइंग कॉस्ट (ब्याज भार) को भी शामिल किया जाए।
  • वितरण कंपनियों के रेगुलेटरी एसेट वसूली में देरी के कारणों की कड़ी ऑडिट की जाए।
  • एप्लेट ट्राइब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी (APTEL) इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेगा।
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अदालत की चेतावनी

हालांकि अदालत ने माना कि रेगुलेटरी एसेट उपभोक्ताओं को अचानक टैरिफ झटके से बचा सकता है, लेकिन इस प्रणाली के अनुशासनहीन उपयोग पर सख्त टिप्पणी की:

“रेगुलेटरी एसेट का अनियंत्रित रूप से बढ़ना, नियामक विफलता को दर्शाता है और उपभोक्ताओं पर असमान बोझ डालता है।”

अदालत ने यह भी कहा कि बिजली एक सार्वजनिक संपत्ति है और इसकी समान, न्यायपूर्ण और सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित करना नियामकों और सरकारों की संविधानिक जिम्मेदारी है।

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