पर्यावरणीय क्षति पर मुआवजा लगाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मिला सुप्रीम कोर्ट का समर्थन

पर्यावरणीय शासन को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को वास्तविक या संभावित पर्यावरणीय क्षति के लिए पुनर्स्थापनात्मक (restitutionary) और प्रतिपूरक (compensatory) हर्जाने लगाने का अधिकार प्राप्त है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण की रोकथाम और पुनर्वास ही पर्यावरणीय कानूनों का मूल आधार होना चाहिए।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिंहा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम और वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को यह शक्ति संवैधानिक और वैधानिक रूप से प्राप्त है।

न्यायमूर्ति नरसिंहा ने अपने फैसले में लिखा, “हमने पाया कि जल और वायु अधिनियमों के तहत कार्य कर रहे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, संभावित पर्यावरणीय क्षति की रोकथाम के लिए पूर्व-सक्रिय (ex-ante) उपाय के रूप में निश्चित राशि या बैंक गारंटी की मांग कर सकते हैं।”

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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मुआवजा दंडात्मक नहीं बल्कि नागरिक प्रकृति का है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय हानि की भरपाई करना या उसे रोकना है, न कि दोषियों को दंडित करना। दंडात्मक कार्रवाई केवल अधिनियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही की जा सकती है।

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शीर्ष अदालत ने 2012 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की यह शक्ति सीमित कर दी गई थी।

पीठ ने कहा कि “पोल्युटर पे” (प्रदूषक भुगतान करे) और “सावधानी सिद्धांत” (precautionary principle) भारतीय पर्यावरण कानून के मूल स्तंभ हैं, और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की यह जिम्मेदारी है कि वे पर्यावरणीय क्षति के पूर्व संकेत मिलने पर ही निवारक कदम उठाएं।

फैसले में कहा गया, “यह शक्तियाँ जल अधिनियम की धारा 33ए और वायु अधिनियम की धारा 31ए के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों से जुड़ी हुई सहायक शक्तियाँ हैं। हालांकि, इन शक्तियों का उपयोग प्राकृतिक न्याय, पारदर्शिता और निश्चितता के सिद्धांतों के अनुसार अधीनस्थ विधियों के तहत ही किया जाना चाहिए।”

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कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसे मुआवजों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू करने के लिए नियमों और उपविधियों के रूप में उपयुक्त अधीनस्थ कानूनों की अधिसूचना जारी की जाए।

फैसले में कहा गया कि ‘पोल्युटर पे सिद्धांत’ न केवल तब लागू होता है जब कोई निर्धारित सीमा पार होती है और क्षति होती है, बल्कि तब भी जब सीमा पार न हुई हो लेकिन पर्यावरणीय क्षति हो चुकी हो — या जब केवल संभावित खतरा या हानिकारक प्रभाव की आशंका हो।

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