सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में तेजी से बिगड़ते पर्यावरणीय हालात को लेकर गहरी चिंता जताई है और राज्य व केंद्र सरकार को आगाह किया है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो हिमाचल प्रदेश “हवा में विलीन हो सकता है”। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा कि राजस्व अर्जन को पर्यावरण और पारिस्थितिकी के नुकसान की कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस जे. बी. पारडिवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी हिमाचल प्रदेश सरकार के जून 2025 के उस नोटिफिकेशन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें कुछ क्षेत्रों को “ग्रीन एरिया” घोषित किया गया था। हिमाचल हाईकोर्ट ने पहले इस याचिका को खारिज कर दिया था।
“राजस्व से ज्यादा ज़रूरी है पर्यावरण की रक्षा”

पीठ ने कहा, “हम राज्य सरकार और भारत सरकार को यह स्पष्ट रूप से बताना चाहते हैं कि राजस्व कमाना ही सब कुछ नहीं है। यह पर्यावरण और पारिस्थितिकी के मूल्य पर नहीं होना चाहिए।”
अदालत ने चेतावनी दी, “अगर चीजें इसी तरह चलती रहीं, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल प्रदेश मानचित्र से गायब हो सकता है। ईश्वर न करे कि ऐसा हो।”
मानव गतिविधियों से बिगड़ रहे हैं हालात
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिमाचल में जलवायु परिवर्तन का “दृष्टिगोचर और गंभीर प्रभाव” देखने को मिल रहा है और इसके लिए केवल प्रकृति को दोष देना उचित नहीं है। पीठ ने कहा, “लगातार पहाड़ों का खिसकना, सड़कों पर भूस्खलन, मकानों और सड़कों का धंसना—ये सब मानवजनित हैं, प्रकृति नहीं।”
विशेषज्ञों की रिपोर्टों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि बड़े पैमाने पर चल रही जलविद्युत परियोजनाएं, फोरलेन सड़कें, वनों की कटाई और बहुमंजिला इमारतों का निर्माण इस विनाश के मुख्य कारण हैं।
अधूरी योजना और पर्यटन पर चिंता
कोर्ट ने कहा कि हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता का लाभ उठाते हुए सरकार ने राज्य को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने के लिए सड़कें और सुरंगें बनाई हैं, लेकिन यह अक्सर बिना पर्यावरणीय मूल्यांकन के हुआ है।
“अनियंत्रित पर्यटन विकास ने राज्य के पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव डाला है। अगर इस पर लगाम नहीं लगी, तो यह राज्य की पारिस्थितिकी और सामाजिक ताने-बाने को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।”
हिमालयी राज्यों को मिलकर करना होगा काम
अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि हिमालयी क्षेत्र की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए, सभी हिमालयी राज्यों को मिलकर संसाधनों और विशेषज्ञता का समावेश करना चाहिए ताकि विकास योजनाएं इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बनाई जा सकें।
सार्वजनिक हित याचिका के रूप में मामला दर्ज, कार्य योजना मांगी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सार्वजनिक हित याचिका के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया है और हिमाचल सरकार से यह जवाब मांगा है कि क्या उनके पास मौजूदा पर्यावरणीय संकट से निपटने की कोई कार्य योजना है और भविष्य में क्या कदम उठाए जाएंगे।
पीठ ने कहा, “बहुत नुकसान पहले ही हो चुका है, लेकिन कहावत है ‘कुछ नहीं से कुछ बेहतर है।’”
यह मामला अब 25 अगस्त को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।