कोई भी हाईकोर्ट या ट्रायल कोर्ट किसी विशेष राशि को जमा करने के वादे पर नियमित या अग्रिम जमानत नहीं देगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा है कि किसी अभियुक्त द्वारा धनराशि जमा करने के आश्वासन के आधार पर नियमित या अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। अदालत ने जमानत मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर भी सख्त टिप्पणी की।

मामला क्या था?

इस अपील में आरोपी गजानन दत्तात्रय गोरे को महाराष्ट्र के सतारा सिटी पुलिस स्टेशन में दर्ज अपराध संख्या 652/2023 के तहत 17 अगस्त 2023 को गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ IPC की धारा 406, 408, 420, 467, 468, 471, 504 और 506 पढ़ी गई धारा 34 के तहत कई गंभीर आरोप थे।

गोरे पर आरोप था कि उन्होंने साताेरा एडवर्टाइजिंग कंपनी और I-Can ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, जहां वे बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर के रूप में कार्यरत थे, से ₹1.66 करोड़ का गबन किया।

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निचली अदालत से नियमित जमानत खारिज होने के बाद, उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में बेल एप्लिकेशन संख्या 445/2024 दाखिल की।

हाई कोर्ट ने शर्तों के साथ दी थी जमानत

1 अप्रैल 2024 को हाई कोर्ट ने गोरे को 22 मार्च 2024 को दाखिल किए गए एक शपथपत्र-सह-प्रतिज्ञा पत्र के आधार पर जमानत दे दी। इसमें गोरे ने ₹25 लाख की राशि पांच महीने में जमा करने का वादा किया था। जमानत इसी शर्त पर दी गई थी और साथ ही उन्हें I-Can संस्था के नाम और लोगो का उपयोग करने से भी रोका गया था।

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वादा निभाया नहीं, जमानत रद्द

हालांकि जमानत मिलने के बाद भी गोरे ने तय की गई राशि जमा नहीं की। इसके चलते शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) की ओर से अधिवक्ता श्री गणेश गोले ने हाई कोर्ट में अंतरिम आवेदन संख्या 4524/2024 दाखिल कर जमानत रद्द करने की मांग की।

1 जुलाई 2025 को हाई कोर्ट ने गोरे की जमानत रद्द कर दी। कोर्ट ने यह कहा कि:

  • जमानत केवल राशि जमा करने की शर्त पर दी गई थी।
  • आरोपी की कार्यप्रणाली से यह स्पष्ट है कि उन्होंने जमानत याचिका की मेरिट पर अदालत को विचार करने का अवसर ही नहीं दिया।
  • पहले उन्होंने न्यायालय से लाभ लिया और बाद में शर्त को “कठिन” कहकर उससे मुकरने की कोशिश की।

कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के Kundan Singh v. Superintendent of CGST and Central Excise फैसले में भी इस तरह की जमानत शर्तों को नकारा गया है।

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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और सख्त निर्देश

गोरे ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनकी ओर से अधिवक्ता श्री ए.एम. बोजोर बरुआ पेश हुए और तर्क दिया कि शर्त अनुचित थी और याचिका की मेरिट पर विचार किया जाना चाहिए था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए देशभर की अदालतों के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए।

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां और निर्देश:

1. प्रतिज्ञा के आधार पर जमानत नहीं:

“कोई भी ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट नियमित या अग्रिम जमानत इस आधार पर नहीं देगा कि आरोपी कोई धनराशि जमा करने को तैयार है।”

2. केवल मेरिट के आधार पर विचार:

“हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट को नियमित या अग्रिम जमानत की याचिकाओं पर केवल प्रकरण की मेरिट के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।”

3. न्यायालय की गरिमा बनी रहनी चाहिए:

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता “अदालतों के साथ छल कर रहे हैं जिससे न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंच रही है।”

4. कानूनी रणनीति की आलोचना:

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले हलफनामा देकर न्यायिक प्रक्रिया का लाभ लिया और फिर उससे मुकरने की कोशिश की, जो “पेशेवर नैतिकता पर सवाल उठाता है।”

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नतीजा:

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
  • याचिकाकर्ता पर ₹50,000 की लागत लगाई गई, जो एक सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र में जमा करनी होगी।
  • आदेश की प्रति सभी हाई कोर्टों को भेजने का निर्देश दिया गया।
  • याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण के बाद मेरिट के आधार पर नई जमानत याचिका दाखिल करने की स्वतंत्रता दी गई।

वकील:
अपीलकर्ता की ओर से: श्री ए.एम. बोजोर बरुआ
प्रतिवादी संख्या 2 (शिकायतकर्ता) की ओर से: श्री प्रशांत एस. केंजले
हाई कोर्ट में: श्री गणेश गोले (शिकायतकर्ता), श्री शैलेश खरात (आरोपी), श्रीमती वीरा शिंदे (एपीपी, राज्य)

प्रकरण विवरण:
क्रिमिनल अपील संख्या 3219/2025
(@ विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 10749/2025)
गजानन दत्तात्रय गोरे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य
पीठ: न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन

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