2002 के पोस्ट-गोधरा दंगा मामले में दोषसिद्धि के लगभग दो दशक बाद, गुजरात हाईकोर्ट ने तीन व्यक्तियों को सबूतों की विश्वसनीयता और पुष्टि के अभाव में बरी कर दिया है।
जस्टिस गीता गोपी की एकल पीठ ने सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता द्वारा उनकी दोषसिद्धि और 29 मई 2006 को आनंद की फास्ट-ट्रैक कोर्ट द्वारा सुनाई गई पांच साल की कठोर कारावास की सजा के खिलाफ दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया। तीनों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दंगा, आगजनी और गैरकानूनी जमावड़े के लिए दोषी ठहराया गया था।
हाईकोर्ट ने अपने सोमवार को दिए गए फैसले में कहा, “ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों की सराहना में त्रुटि की है। दोषसिद्धि विश्वसनीय और पुष्ट साक्ष्यों पर आधारित नहीं है। आरोपियों की पहचान ट्रायल के दौरान साबित नहीं हो सकी है।”

इस मामले में नौ लोगों पर मुकदमा चला था, जिनमें से चार को दोषी ठहराया गया था। इनमें से एक दोषी की 2009 में मृत्यु हो गई थी। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि दोषियों ने 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में आग लगाए जाने की घटना के अगले दिन आनंद ज़िले में एक भीड़ का हिस्सा बनकर दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की थी, जो बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के तहत लागू निषेधाज्ञा का उल्लंघन था।
हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि अपीलकर्ता वास्तव में उस भीड़ का हिस्सा थे या उन्होंने आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं में भाग लिया था। कोर्ट ने कहा, “आरोपियों द्वारा किसी भी ऐसे कृत्य को साबित नहीं किया जा सका है जो सामूहिक उद्देश्य के तहत निजी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या आग लगाने के इरादे से किया गया हो।”
जिस हिंसा की बात की जा रही है वह उस घटना के बाद हुई थी जिसमें गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी को आग लगा दी गई थी, जिसमें अधिकांशतः करसेवकों समेत 59 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना गुजरात के इतिहास में सबसे भयानक साम्प्रदायिक हिंसा की शुरुआत बनी।
करीब 20 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब इन तीनों अपीलकर्ताओं को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है।