दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जवाब तलब किया है, जो कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की पत्नी डॉ. बिलक़ीस शाह द्वारा दायर उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें 2007 के मनी लॉन्ड्रिंग मामले को रद्द करने की मांग की गई है। यह मामला कथित आतंकी फंडिंग से जुड़ा हुआ है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने ईडी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 सितंबर की तारीख तय की। अदालत ने इससे पहले 23 जुलाई को इसी मामले में सह-आरोपी मोहम्मद असलम वानी की याचिका पर भी ईडी को नोटिस जारी किया था और सोमवार को कहा, “इसी प्रकार का आदेश जारी किया जाए।”
डॉ. बिलक़ीस पर आरोप है कि उन्होंने सह-आरोपी वानी से ₹2.08 करोड़ प्राप्त किए थे। उनके वकील एम. एस. खान ने दलील दी कि यह मामला उस मुख्य अपराध पर आधारित है जिसमें केवल वानी को आरोपी बनाया गया था, और वह नवंबर 2010 में सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं, सिवाय Arms Act के तहत दोषसिद्धि के। हाईकोर्ट ने भी 2017 में इस फैसले को बरकरार रखा था।

खान ने तर्क दिया, “जब आधारभूत अपराध (scheduled offence) ही नहीं टिकता, तो मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम (PMLA) के तहत दर्ज मामला भी नहीं चल सकता। यह कानून का स्पष्ट सिद्धांत है।”
ईडी की कार्रवाई अगस्त 2005 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा वानी की गिरफ्तारी पर आधारित है, जिसमें ₹63 लाख नकद और हथियार बरामद हुए थे। वानी ने पुलिस को बताया था कि यह राशि शब्बीर शाह और जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर अबू बकर को पहुंचाई जानी थी। उसने यह भी दावा किया था कि उसने करीब ₹2.25 करोड़ शाह और उनके परिजनों को अलग-अलग किस्तों में पहुंचाए थे।
वर्ष 2017 में शब्बीर शाह और वानी पर आरोप तय किए गए थे, जबकि डॉ. बिलक़ीस को 2021 में एक अनुपूरक आरोपपत्र के जरिए मामले में आरोपी बनाया गया। वकील खान ने यह भी बताया कि पिछले सात वर्षों में केवल 33 में से चार गवाहों की ही गवाही हो पाई है।