छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मन्सिंह भारद्वाज के खिलाफ कलेक्टर द्वारा पारित निलंबन आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यह आदेश ऐसे प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया था जिसे वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं था। खंडपीठ ने कहा कि केवल वही प्राधिकारी जो संबंधित नियमों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अधिकृत है, अनुशासनात्मक अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। चूंकि कलेक्टर नियुक्तिकर्ता अथवा अनुशासनात्मक प्राधिकारी नहीं थे, इसलिए उनका पारित किया गया आदेश अधिकार क्षेत्र से परे और अवैध था।
मामले की पृष्ठभूमि
मन्सिंह भारद्वाज, एक श्रेणी-2 राजपत्रित अधिकारी हैं, जिनका मूल पद प्राचार्य का है और वे वर्तमान में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, जगदलपुर के रूप में कार्यरत थे। 6 जून 2025 को जिला स्तर युक्तियुक्तकरण समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर, बस्तर द्वारा उन पर शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण से संबंधित निर्देशों के उल्लंघन और गलत जानकारी प्रस्तुत करने का आरोप लगाकर निलंबन आदेश पारित किया गया।
भारद्वाज ने उक्त आदेश को रायपुर स्थित उच्च न्यायालय में डब्ल्यूपीएस संख्या 5711 / 2025 में चुनौती दी थी, जिसे एकल पीठ द्वारा 4 जुलाई 2025 को खारिज कर दिया गया। इसके विरुद्ध उन्होंने वर्तमान याचिका (डब्ल्यूए संख्या 531 / 2025) दायर की।

अपीलकर्ता की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि:
- छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम, 1966 के तहत कलेक्टर न तो नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी हैं और न ही अनुशासनात्मक प्राधिकारी।
- नियम 9(1) के अनुसार केवल नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी, उससे उच्च प्राधिकारी, या राज्यपाल द्वारा अधिकृत कोई अन्य प्राधिकारी ही निलंबन आदेश पारित कर सकता है।
- अपीलकर्ता के अनुसार, नियुक्तिकर्ता सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग हैं और केवल संभागायुक्त को उक्त शक्तियाँ अधिसूचना दिनांक 4 अगस्त 2008 द्वारा सौंपी गई हैं।
- निलंबन आदेश में विभागीय कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं दी गई, ना ही कोई कारण बताने का अवसर प्रदान किया गया, और यह आदेश स्वयं कलेक्टर द्वारा हस्ताक्षरित भी नहीं था।
- एकल पीठ द्वारा पंचूराम ठाकुर बनाम राज्य मामले पर भरोसा करना गलत था क्योंकि उस मामले में आदेश संभागायुक्त द्वारा पारित किया गया था, जबकि वर्तमान मामला कलेक्टर से संबंधित है।
राज्य का पक्ष
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री यशवंत सिंह ठाकुर ने एकल पीठ के निर्णय का समर्थन करते हुए अपील खारिज करने की मांग की।
न्यायालय का विश्लेषण
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि नियम 9(1) के अनुसार केवल नियुक्तिकर्ता अथवा राज्यपाल द्वारा विधिपूर्वक अधिकृत प्राधिकारी ही निलंबन आदेश पारित कर सकता है।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया:
“यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता का मूल पद प्राचार्य का है और उनके नियुक्तिकर्ता सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग हैं। अतः कलेक्टर द्वारा पारित निलंबन आदेश विधिसम्मत प्राधिकारी द्वारा पारित नहीं किया गया।”
न्यायालय ने यह भी देखा कि आदेश में यह नहीं कहा गया कि यह किसी प्रस्तावित विभागीय कार्यवाही के तहत पारित किया गया था, और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
न्यायालय ने Joint Action Committee of Airline Pilots Association of India v. DGCA, (2011) 5 SCC 435 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को उद्धृत किया:
“केवल वही प्राधिकारी जो विधिसम्मत रूप से अधिकृत है, आदेश पारित कर सकता है। कोई अन्य अधिकारी—even if senior—कानून सम्मत कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।”
इसके अतिरिक्त Whirlpool Corporation v. Registrar of Trade Marks, (1998) 8 SCC 1 के आधार पर न्यायालय ने कहा कि यदि आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ है, तो वैकल्पिक उपाय की उपस्थिति के बावजूद उच्च न्यायालय की रिट क्षेत्राधिकार बरकरार रहती है।
अंतिम निर्णय
खंडपीठ ने कहा:
“चूंकि दिनांक 06.06.2025 को पारित निलंबन आदेश एक अयोग्य प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया है, अतः उसे निरस्त किया जाता है।”
न्यायालय ने संभागायुक्त (प्रतिवादी संख्या 3) को कानून के अनुसार दो सप्ताह के भीतर इस विषय पर नया आदेश पारित करने की स्वतंत्रता दी।
फलस्वरूप, अपील स्वीकार की गई, 4 जुलाई 2025 को पारित एकल पीठ का आदेश रद्द किया गया और अपीलकर्ता की मूल याचिका (डब्ल्यूपीएस संख्या 5711 / 2025) को स्वीकार किया गया।