नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के 17 जून 2025 के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की नई सूची के क्रियान्वयन पर रोक लगाई गई थी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने यह अंतरिम आदेश दिया और राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देती है।
जैसे ही मामला सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुआ, मुख्य न्यायाधीश गवई ने हैरानी जताई कि हाईकोर्ट ने इस आधार पर सूची पर रोक कैसे लगा दी कि केवल विधानमंडल ही ओबीसी सूची को मंजूरी दे सकता है। उन्होंने टिप्पणी की,
“हाईकोर्ट इस तरह रोक कैसे लगा सकता है? आरक्षण कार्यपालिका का विषय है। यह बात इंदिरा साहनी के फैसले से लेकर अब तक विधि द्वारा स्थापित है। कार्यपालिका इसे कर सकती है। आरक्षण देने के लिए केवल कार्यकारी आदेश ही पर्याप्त हैं, इसके लिए कानून की आवश्यकता नहीं होती।”

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट की यह टिप्पणी गलत है कि राज्य सरकार को 2012 अधिनियम के तहत सर्वेक्षण रिपोर्ट और विधेयक विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने थे।
राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए बताया कि इस आदेश के चलते कई नियुक्तियाँ और प्रोन्नतियाँ अटकी हुई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस आदेश के आधार पर हाईकोर्ट में अवमानना याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं।
जब सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि हाईकोर्ट में नए पीठ के समक्ष मामले को शीघ्र निपटाने की अनुमति दी जाए, तो प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्तागण रणजीत कुमार और गुरु कृष्णकुमार ने इसका विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट में ही मामले पर सुनवाई की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि नई ओबीसी सूची उचित आंकड़ों के बिना और राज्य के कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना तैयार की गई है।
सिब्बल ने इसका जवाब देते हुए कहा कि यह सूची राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए गए नए सर्वेक्षण और रिपोर्ट के आधार पर बनाई गई है। उन्होंने कहा,
“हाईकोर्ट ने भी इस तथ्य पर कोई आपत्ति नहीं जताई कि आयोग ने यह कार्य किया है।”
सुप्रीम कोर्ट ने अंततः हाईकोर्ट के आदेश को “प्रथम दृष्टया त्रुटिपूर्ण” बताते हुए उस पर रोक लगा दी। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया सही थी या नहीं, यह आगे चलकर हाईकोर्ट तय करेगा। आदेश में कहा गया:
“आयोग ने कोई न कोई कार्यप्रणाली अपनाई है। वह सही है या गलत, यह हाईकोर्ट द्वारा अंतिम रूप से निर्धारित किया जाएगा।”
यह मामला मई 2024 में कलकत्ता हाईकोर्ट के उस निर्णय से जुड़ा है, जिसमें 77 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल किए जाने को अपर्याप्त औचित्य के आधार पर रद्द कर दिया गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग एक नया पहचान अभ्यास करेगा। अब जो अधिसूचनाएं चुनौती दी गई हैं, वे उसी प्रक्रिया का परिणाम हैं।