सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के हमलों से होने वाली रेबीज मौतों पर मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया

नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025 — आवारा कुत्तों के हमलों की बढ़ती घटनाओं और रेबीज से हो रही मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्वतः संज्ञान लेते हुए इस गंभीर समस्या पर त्वरित हस्तक्षेप किया है। यह संज्ञान एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है, जिसमें खासकर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहे प्रभाव को रेखांकित किया गया है।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने “City hounded by strays and kids pay price” शीर्षक वाली खबर पर संज्ञान लेते हुए इसे अत्यंत चिंताजनक बताया। रिपोर्ट में शहरी और आस-पास के इलाकों में कुत्तों के काटने की घटनाओं और उनमें से कई मामलों में रेबीज संक्रमण के कारण मौत की बात सामने आई है।

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न्यायमूर्ति पारडीवाला ने खुले कोर्ट में कहा,
“यह रिपोर्ट बेहद परेशान करने वाली है। इसमें दर्ज विवरणों से यह स्पष्ट होता है कि सैकड़ों की संख्या में कुत्तों के काटने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिनमें से कई में पीड़ित रेबीज का शिकार हो रहे हैं। अंततः नवजात शिशु और बुजुर्ग ही इस जानलेवा बीमारी का शिकार बन रहे हैं।”

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इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस मामले को स्वतः संज्ञान लेकर दाखिल की गई रिट याचिका के रूप में पंजीकृत करे और इस आदेश की प्रति संबंधित समाचार रिपोर्ट के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष आवश्यक निर्देशों हेतु प्रस्तुत की जाए।

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यह हस्तक्षेप उस समय हुआ है जब देशभर में आवारा कुत्तों की अनियंत्रित बढ़ती संख्या और स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को लेकर जनता में चिंता बढ़ती जा रही है। लगातार सामने आ रही खबरें इस बात की पुष्टि करती हैं कि शिशुओं और बुजुर्गों पर हमले हो रहे हैं और प्रभावी नियंत्रण की कोई समेकित नीति नज़र नहीं आ रही है।

अदालत द्वारा उद्धृत रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई मामलों में कुत्तों के काटने के बाद समय पर रेबीज रोधी टीका नहीं मिलने के कारण पीड़ितों की मौत हो गई। जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि एक बार लक्षण उभरने के बाद रेबीज लगभग हमेशा जानलेवा होता है। उन्होंने तुरंत टीकाकरण अभियान चलाने और पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप को देखते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला देशभर में आवारा पशु प्रबंधन, सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे और नगरपालिका जवाबदेही को लेकर व्यापक नीति निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

मुख्य न्यायाधीश द्वारा उपयुक्त पीठ के समक्ष इस मामले को शीघ्र सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है।

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