सरकार ने स्पष्ट किया: संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने का कोई इरादा नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के हालिया रुख से अलग रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में स्पष्ट किया कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की कोई योजना या प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक लिखित उत्तर में कहा:

“संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने के लिए सरकार ने कोई औपचारिक कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है। कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक हलकों में इस पर चर्चाएं या बहसें हो सकती हैं, लेकिन सरकार की ओर से इस संबंध में कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव घोषित नहीं किया गया है।”

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यह बयान RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले की उस मांग के विपरीत है जिसमें उन्होंने आपातकाल के दौरान जोड़े गए इन दोनों शब्दों को हटाने की बात कही थी। होसबोले ने तर्क दिया था कि यह संशोधन उस लोकसभा ने किया था जिसकी अवधि समाप्त हो चुकी थी। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इन शब्दों को “फोड़े” की संज्ञा दी थी।

कानून मंत्री ने इन बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

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“कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए वातावरण के संदर्भ में यह संभव है कि कुछ समूह इन शब्दों की पुनर्विचार की मांग कर रहे हों या राय व्यक्त कर रहे हों। ऐसे प्रयास सार्वजनिक विमर्श या वातावरण तैयार कर सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि ये सरकार की आधिकारिक स्थिति या कार्रवाई को दर्शाते हों।”

यह गौरतलब है कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था — वह भी उस समय जब देश में आपातकाल लागू था, मौलिक अधिकार निलंबित थे, विपक्ष के वरिष्ठ नेता जेल में थे और आम चुनाव स्थगित कर दिए गए थे।

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मेघवाल ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला देते हुए बताया कि भारतीय संदर्भ में ‘समाजवाद’ का अर्थ कल्याणकारी राज्य है और यह निजी क्षेत्र की वृद्धि में बाधा नहीं डालता। वहीं ‘धर्मनिरपेक्षता’ संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता।

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