सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हरियाणा के नूंह ज़िले में अवैध खनन से तबाह हुए अरावली पहाड़ियों के एक हिस्से के लिए बहाली योजना तैयार करने का निर्देश केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को दिया। कोर्ट ने हरियाणा सरकार को इस प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग देने का भी आदेश दिया।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने CEC की रिपोर्ट और राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर किया। कोर्ट ने अब तक की सुधारात्मक कार्रवाई पर अस्थायी संतोष व्यक्त किया और मामले की अगली सुनवाई 12 सप्ताह बाद तय की।
यह कार्यवाही उस व्यापक मामले का हिस्सा है, जिसमें CEC ने अरावली की संरक्षित वन भूमि से होकर 1.5 किलोमीटर लंबी अवैध सड़क निर्माण का खुलासा किया था। यह सड़क कथित रूप से “माइनिंग माफिया” द्वारा स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से बनाई गई थी, जिसके लिए कोई पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं ली गई थी। इसका उपयोग नूंह से राजस्थान तक पत्थरों के अवैध परिवहन के लिए किया गया।

इससे पहले 29 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को अवैध खनन और वन कानूनों के उल्लंघन में संलिप्त अधिकारियों पर कार्रवाई न करने को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा दायर “चोरी-छिपे” हलफनामे पर नाराजगी जताई थी और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर 16 जुलाई तक अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
CEC की 15 अप्रैल की रिपोर्ट ने अरावली क्षेत्र में पर्यावरणीय विनाश की गंभीर तस्वीर पेश की। इसमें वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 के उल्लंघन का उल्लेख किया गया। रिपोर्ट में बताया गया कि अक्टूबर 2024 से अप्रैल 2025 के बीच भारी मशीनरी से वन और कृषि भूमि पर अवैध सड़क बनाई गई, जिससे पुराने वृक्षारोपण और तेंदुओं के वन्यजीव गलियारे बुरी तरह प्रभावित हुए।
रिपोर्ट में प्रशासनिक उदासीनता का भी जिक्र किया गया, जहां वरिष्ठ राजस्व अधिकारियों ने बैठक में शामिल होने से परहेज़ किया और “असहयोगी रवैया” अपनाया। रिपोर्ट ने सरकार के अधिकारियों, राजनीतिक हस्तियों और खनन माफिया के बीच सांठगांठ की ओर भी इशारा किया।
बासई मेव गांव के किसानों की ओर से अधिवक्ता गौरव बंसल ने पर्यावरण विनाश में जिम्मेदार अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराने और तत्काल बहाली उपायों की मांग की।