छोटी गलतियों के लिए वकीलों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता को सज़ा देने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि वकीलों को छोटी गलतियों के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका उनके करियर पर गंभीर असर पड़ सकता है। कोर्ट ने एक अधिवक्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि “कानून की महिमा दंड देने में नहीं, बल्कि क्षमा करने में निहित है।”

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ उस मामले पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ द्वारा विभाजित निर्णय दिया गया था।

पीठ ने कहा,

Video thumbnail

“हम भी इस मत के हैं कि छोटी गलती के लिए वकीलों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे उनके करियर पर गंभीर असर पड़ सकता है।”

पहले आया था विभाजित फैसला

इस मामले में पहले न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने माना था कि संबंधित एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) और सहायक वकील ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया और संस्थान की गरिमा का सम्मान नहीं किया। लेकिन दोनों जजों की राय सज़ा को लेकर अलग थी।

READ ALSO  ऑफिस अधीनस्थों को जजों के आवास पर घरेलू कार्य सौंपे जा सकते हैं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने AoR का नाम एक माह के लिए पंजी से निलंबित करने और सहायक वकील को सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) में ₹1 लाख जमा कराने का निर्देश देने का प्रस्ताव रखा।

वहीं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने वकीलों द्वारा दाखिल की गई बिना शर्त माफ़ी और उनके अब तक के निष्कलंक रिकॉर्ड को देखते हुए यह सज़ा “कठोर” मानी और कहा कि:

“बेशक अधिवक्ताओं का आचरण निंदनीय था और क्षमा योग्य नहीं था, लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ताओं, एससीबीए और एससीएओआरए के पदाधिकारियों की अपीलों को देखते हुए और वकीलों द्वारा की गई पूरी और बिना शर्त माफ़ी के चलते इसे स्वीकार किया जाता है।”

उन्होंने आगे कहा:

“जहां धर्म है, वहां जय है — यह सुप्रीम कोर्ट का मूल मंत्र है। लेकिन साथ ही, ‘क्षम धर्मस्य मूल्यम्’ — क्षमा धर्म का मूल है, इसे भी नहीं भूला जा सकता।”

सीजेआई की पीठ ने अपनाई क्षमा की राह

दो जजों की अलग-अलग राय के चलते मामला उचित आदेश के लिए मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष लाया गया। सीजेआई गवई की पीठ ने न्यायमूर्ति शर्मा की राय से सहमति जताई और वकीलों की माफ़ी स्वीकार कर ली।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 8 पुलिसकर्मियों की बेरहमी से हत्या करने के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज की

कोर्ट ने कहा:

“कानून की महिमा किसी को दंडित करने में नहीं, बल्कि उसकी गलती को क्षमा करने में है… जैसा कि कहा गया है, बार और बेंच न्याय रूपी रथ के दो पहिए हैं।”

वरिष्ठ अधिवक्ता और एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने मामले में संबंधित AoR की ओर से पैरवी की।

क्या है मामला?

यह मामला तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि एक याचिकाकर्ता की ओर से दूसरी विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी ताकि पहली याचिका में दी गई आत्मसमर्पण की शर्त से बचा जा सके। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने AoR को “तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश” करने के लिए फटकार लगाई और इसे प्रथम दृष्टया अवमानना का मामला बताया।

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या मामले में आरोपमुक्ति याचिका पर पुलिस से मांगा जवाब

हालांकि जब सुप्रीम कोर्ट बार के सदस्यों ने दलील दी कि इससे AoR का करियर बर्बाद हो जाएगा, तो कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से परहेज़ किया।

इस दौरान न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने मौखिक टिप्पणी में कहा था:

“संस्थान की कोई परवाह नहीं करता… क्या सिर्फ इसलिए किसी अधिवक्ता को छोड़ दिया जाए क्योंकि आप सभी यहां प्रैक्टिस कर रहे हैं और मिलकर कोर्ट पर दबाव डाल रहे हैं कि कोई आदेश न दिया जाए? क्या यही तरीका है?”

लेकिन अंततः, सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि न्याय के सिद्धांत केवल कठोरता पर नहीं, बल्कि उचित दया और क्षमा पर भी आधारित हैं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles