चुनाव आयोग (EC) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिहार में मतदाता सूची संशोधन के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को अकेले वैध दस्तावेज के रूप में नहीं माना जा सकता। आयोग ने यह बात उन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करते हुए कही, जिनमें बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (special intensive revision) को चुनौती दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को आयोग से कहा था कि वह “न्याय के हित में” आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज के तौर पर विचार करे। इसके जवाब में आयोग ने हलफनामे में कहा कि आधार भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं है, हालांकि इसे अन्य दस्तावेजों के साथ मिलाकर पात्रता साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
आयोग ने स्पष्ट किया कि 11 दस्तावेजों की सूची “संकेतात्मक है, न कि अंतिम”। इसके अलावा, नामांकन फॉर्म में वोटर का EPIC नंबर और आधार नंबर के लिए वैकल्पिक कॉलम पहले से मौजूद हैं।

राशन कार्ड को लेकर आयोग ने कहा कि नकली राशन कार्डों की व्यापकता के कारण इसे मुख्य दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया, लेकिन निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (Electoral Registration Officer) को प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेजों पर विचार करने की बाध्यता है। दस्तावेजों को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय हर मामले में अलग-अलग लिया जाएगा।
वोटर आईडी के संदर्भ में आयोग ने कहा कि चूंकि वोटर आईडी स्वयं संशोधित हो रही मतदाता सूचियों पर आधारित है, इसलिए इसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करने से पूरी प्रक्रिया ही निरर्थक हो जाएगी।
गौरतलब है कि 24 जून को बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण की घोषणा की गई थी। इसके तहत जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज देने होंगे। अनुमान है कि राज्य के करीब 7.8 करोड़ वोटरों में से 2.9 करोड़ (लगभग 37%) लोगों को प्रमाण देना होगा।
विभिन्न आयु वर्ग के लिए अलग-अलग दस्तावेज मांगे गए हैं: 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को अपने जन्म का प्रमाण देना होगा, 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने साथ माता-पिता में से किसी एक का जन्म प्रमाण भी देना होगा, और 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को स्वयं व माता-पिता दोनों के जन्म प्रमाण देने होंगे।
यदि अधिकारी प्रस्तुत दस्तावेजों से संतुष्ट हुए, तो संबंधित व्यक्ति का नाम नई मतदाता सूची में जोड़ा जाएगा, अन्यथा नाम हटा दिया जाएगा। मसौदा सूची 1 अगस्त को प्रकाशित होगी और अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी।
इस प्रक्रिया का विपक्षी दलों ने विरोध किया है। 2 जुलाई को 11 इंडिया ब्लॉक पार्टियों ने चुनाव आयोग से कहा कि इस प्रक्रिया से 2.5 करोड़ से ज्यादा लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं क्योंकि वे जरूरी दस्तावेज नहीं जुटा पाएंगे। हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 6 जुलाई को इस कवायद का बचाव किया और कहा कि वर्तमान मतदाता सूची से “कोई भी संतुष्ट नहीं” है, इसलिए यह प्रक्रिया जरूरी है।
आयोग ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि मतदाता सूची पुनरीक्षण में न तो कोई कानून का उल्लंघन हुआ है, न ही किसी मतदाता के मौलिक अधिकारों का हनन। आयोग के अनुसार, “special intensive revision का उद्देश्य चुनावों की पवित्रता बनाए रखना है, ताकि अपात्र व्यक्तियों को सूची से हटाया जा सके।”
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि केवल केंद्र सरकार को नागरिकता के सभी पहलुओं का निर्धारण करने का अधिकार है, जिस पर आयोग ने जवाब दिया कि यह तर्क “स्पष्ट रूप से गलत, भ्रांतिपूर्ण और अस्थिर” है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि केवल गृह मंत्रालय को नागरिकता समाप्त करने या अपात्रता निर्धारित करने का अधिकार है, चुनाव आयोग को नहीं। याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि इस विशेष पुनरीक्षण से नागरिकता साबित करने का बोझ आयोग से हटकर नागरिकों पर आ गया है, जो संवैधानिक चिंता का विषय है।