बॉम्बे हाईकोर्ट ने आधार, टैक्स और बैंक अधिकारियों को लगाई फटकार; पहचान की चोरी पर लापरवाही के लिए ₹10,000 का मुआवज़ा देने का आदेश

ब्यूरोक्रेटिक लापरवाही पर तीखी टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) सहित पांच सरकारी और वैधानिक संस्थाओं पर ₹10,000-₹10,000 का मुआवज़ा लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि एक आम नागरिक की पहचान के दुरुपयोग की शिकायतों पर इन संस्थाओं की निष्क्रियता बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

जस्टिस एम.एस. सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने UIDAI, गुजरात के मुख्य आयुक्त, आयकर के मुंबई प्रमुख आयुक्त, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और गुजरात के राज्य कर आयुक्त को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह “बेहद दुखद स्थिति” है कि इन संस्थाओं ने पांच वर्षों तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की।

मामला मुंबई के 51 वर्षीय दुकानदार विलास प्रभाकर लाड का है, जिन्हें 2019 में गुजरात के राजकोट स्थित एक संपत्ति पर किराया न चुकाने का नोटिस मिला। नोटिस में उन्हें मेट्रो इंटरनेशनल ट्रेडिंग नामक कंपनी से जोड़ा गया—जबकि उन्हें इस कंपनी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।

Video thumbnail

जनवरी 2020 में लाड ने दादर पुलिस से संपर्क किया और तब पता चला कि उनकी पहचान का दुरुपयोग कर अज्ञात लोगों ने एक शेल कंपनी खड़ी की है। उन्होंने UIDAI और जीएसटी अधिकारियों से फर्जी आधार और जीएसटी नंबर को रद्द करने का अनुरोध भी किया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

इस बीच, उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि आंध्र बैंक (जो अब यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलीन हो चुकी है) ने उस शेल कंपनी के नाम पर एक खाता खोल दिया था—वह भी उनके मूल दस्तावेज़ों का उपयोग करके, लेकिन किसी और की तस्वीर लगाकर। इसके बावजूद, किसी के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की गई।

READ ALSO  मद्रास हाईकोर्ट ने सीमान की पासपोर्ट पुनः जारी करने की मांग पर चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश दिया

लाड की ओर से पेश अधिवक्ता उदय वरुंजीकर ने तर्क दिया कि संबंधित प्राधिकरणों ने पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करने में घोर लापरवाही बरती और मांग की कि उन्हें मुआवज़ा दिया जाए तथा दोषियों पर आपराधिक कार्रवाई हो।

UIDAI की ओर से यह तर्क दिया गया कि आधार संख्या को निष्क्रिय कर दिया गया है और दोष बैंक का है जिसने दस्तावेज़ों की सही जांच नहीं की। लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया।

READ ALSO  तेज प्रताप यादव की जा सकती है कुर्सी ? जेडीयू नेता ने दी हाई कोर्ट में चुनौती

पीठ ने टिप्पणी की, “इतनी स्पष्ट गड़बड़ियों के बावजूद न तो कोई FIR दर्ज की गई और न ही दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। यह संबंधित अधिकारियों की पूर्ण विफलता है।”

कोर्ट ने जीएसटी विभाग को आदेश दिया कि लाड का आधार और पैन नंबर अपने रिकॉर्ड से हटाया जाए और पांचों संबंधित प्राधिकरणों को उनके साथ किए गए इस दुर्व्यवहार के लिए ₹10,000-₹10,000 का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।

READ ALSO  बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में जनहित याचिका याचिकाकर्ताओं कि सुनवाई करने से भ्रम का पिटारा खुल जाएगा: दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles