नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत यह इस्तीफा दिया गया है, जिसमें उन्होंने चिकित्सकीय सलाह के आधार पर स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को कारण बताया है। यह इस्तीफा पत्र 21 जुलाई 2025 को राष्ट्रपति को संबोधित किया गया था।
इस्तीफे की पृष्ठभूमि
11 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण करने वाले जगदीप धनखड़ ने अपने संवैधानिक पद से त्यागपत्र दे दिया। उपराष्ट्रपति के रूप में वे राज्यसभा के पदेन सभापति भी थे। उन्होंने राष्ट्रपति को एक औपचारिक पत्र के माध्यम से यह सूचना दी, जिससे उनका कार्यकाल समाप्त हो गया।

इस्तीफे का आधार
अपने पत्र में श्री धनखड़ ने स्पष्ट रूप से लिखा:
“स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने हेतु, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से, संविधान के अनुच्छेद 67(क) के अनुसार, इस्तीफा देता हूँ।”
भारत के संविधान का अनुच्छेद 67(क) उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की प्रक्रिया निर्धारित करता है:
“कोई उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित लिखित पत्र के द्वारा अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है।”
श्री धनखड़ का पत्र इसी प्रावधान का उल्लेख करता है, जिससे उनका त्यागपत्र संवैधानिक रूप से वैध और प्रभावी बन गया। इसके लिए किसी औपचारिक स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
संवैधानिक दृष्टिकोण
हालाँकि यह मामला न्यायालय से संबंधित नहीं है, फिर भी यह संविधानिक प्रक्रिया से नियंत्रित है। अनुच्छेद 67(क) के अनुसार यह एक एकतरफा कार्रवाई है जो पत्र राष्ट्रपति को सौंपते ही प्रभाव में आ जाती है।
संविधान का अनुच्छेद 68(2) कहता है कि यदि उपराष्ट्रपति का पद मृत्यु, इस्तीफे या हटाए जाने के कारण रिक्त होता है, तो उस रिक्ति को भरने के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराया जाना चाहिए।
इस्तीफा पत्र की सामग्री और कृतज्ञता के भाव
अपने त्यागपत्र में, श्री धनखड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान साथ काम करने वाले विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की।
उन्होंने राष्ट्रपति के प्रति लिखा:
“भारत की माननीय राष्ट्रपति के प्रति मेरी गहरी कृतज्ञता, जिनका सहयोग और कार्य संबंध अत्यंत सौहार्दपूर्ण रहा।”
प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के लिए लिखा:
“माननीय प्रधानमंत्री और आदरणीय मंत्रिपरिषद का मैं आभार प्रकट करता हूँ। प्रधानमंत्री का सहयोग अमूल्य रहा और मैंने अपने कार्यकाल में बहुत कुछ सीखा।”
सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा:
“सभी माननीय सांसदों से जो स्नेह, विश्वास और अपनापन मिला, वह मेरी स्मृतियों में सदैव बना रहेगा।”
अपनी भूमिका पर उन्होंने कहा:
“इस महत्वपूर्ण कालखंड में भारत की अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति और विकास का साक्षी बनना और उसमें सहभागी होना मेरे लिए एक सौभाग्य रहा। इस परिवर्तनकारी युग में देश की सेवा करना मेरे जीवन का गौरव रहा है।”
उन्होंने अपने पत्र का समापन इस आशावादी संदेश के साथ किया:
“मैं इस पद को गर्व के साथ छोड़ रहा हूँ — भारत की वैश्विक पहचान और असाधारण उपलब्धियों पर गर्व है और उसके उज्ज्वल भविष्य पर मेरा अटूट विश्वास है।”