भूषण स्टील लिक्विडेशन आदेश की समीक्षा याचिका पर खुले कोर्ट में सुनवाई की मांग

भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (BSPL) के पूर्व प्रवर्तकों ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि उनकी समीक्षा याचिका पर खुले कोर्ट में सुनवाई की जाए। यह याचिका 2 मई को आए उस फैसले के खिलाफ दायर की गई है, जिसमें अदालत ने कंपनी की लिक्विडेशन (दिवालिया प्रक्रिया के तहत परिसमापन) का आदेश दिया था।

पूर्व प्रवर्तक संजय सिंघल, उनके पिता बृज भूषण सिंघल और भाई नीरज सिंघल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष दलील दी कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे खुले कोर्ट में सुना जाए।

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वरिष्ठ वकील ने कहा कि ट्राइब्यूनल द्वारा कंपनी की परिसंपत्तियों का मूल्य बहुत कम निर्धारित किया गया है और शेष देनदारियों का बोझ पूर्व प्रवर्तकों पर डाल दिया गया है।

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इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “मैं एक पीठ गठित करता हूं।” सामान्यतः सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिकाएं जजों द्वारा उनके चैंबर में ही सर्कुलेशन के माध्यम से तय की जाती हैं, न कि खुले कोर्ट में।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की 2 मई की पीठ, जिसमें जस्टिस बेला एम त्रिवेदी (अब सेवानिवृत्त) और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे, ने JSW स्टील द्वारा दायर समाधान योजना को अवैध करार देते हुए खारिज कर दिया था और BSPL के परिसमापन का आदेश दिया था।

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अपने फैसले में अदालत ने समाधान प्रक्रिया से जुड़े सभी प्रमुख पक्षों — समाधान पेशेवर (RP), लेनदारों की समिति (CoC) और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) — की तीखी आलोचना की थी और इसे IBC के “स्पष्ट उल्लंघन” का उदाहरण बताया था।

जस्टिस त्रिवेदी ने फैसले में कहा था कि समाधान पेशेवर ने IBC और कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत अपने वैधानिक दायित्वों का पूरी तरह से उल्लंघन किया। उन्होंने CoC को भी फटकार लगाते हुए कहा कि उन्होंने JSW की समाधान योजना को मंजूरी देते समय अपने विवेक का इस्तेमाल गलत तरीके से किया, जो कि IBC और CIRP नियमों के विपरीत था।

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