मुंबई 7/11 ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया, सबूतों की कमी का हवाला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट मामले में सभी बारह आरोपियों को बरी कर दिया। करीब एक दशक पहले स्पेशल कोर्ट ने इनमें से पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

न्यायमूर्ति अनिल किलोड़ और न्यायमूर्ति श्याम चंडक की विशेष पीठ ने राज्य बनाम कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी व अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि “अभियोजन पक्ष अपना मामला संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।”

अदालत की मुख्य टिप्पणियां
पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के लगभग सभी गवाहों की गवाही अविश्वसनीय पाई गई। अदालत ने सवाल उठाया कि धमाकों के करीब 100 दिन बाद टैक्सी चालकों या यात्रियों के लिए आरोपियों को पहचान पाना कैसे संभव था।

जहाँ तक बम, हथियार, नक्शे जैसी जब्ती का सवाल था, अदालत ने माना कि अभियोजन यह भी साबित नहीं कर पाया कि विस्फोट में किस प्रकार के बम का इस्तेमाल हुआ, इसलिए ये सबूत मामले में निर्णायक नहीं माने जा सकते।

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गौरतलब है कि आरोपियों में से एक, कमाल अंसारी, 2021 में नागपुर जेल में कोविड-19 के चलते मौत का शिकार हो गया था।

मामले की पृष्ठभूमि
11 जुलाई 2006 को मुंबई की पश्चिम रेलवे लाइन की लोकल ट्रेनों में सात सीरियल बम धमाकों में 189 लोग मारे गए थे और 824 लोग घायल हुए थे।

लंबी जांच और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत चली सुनवाई के बाद, अक्टूबर 2015 में विशेष अदालत ने बारह आरोपियों को दोषी ठहराया था। इसमें कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल अतर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नावेद हुसैन खान और आसिफ खान को बम लगाने का दोषी मानते हुए मौत की सजा दी गई थी, जबकि सात अन्य — तनवीर अहमद अंसारी, मोहम्मद माजिद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अतर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख — को उम्रकैद दी गई थी।

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अपील और हाईकोर्ट का फैसला
महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट में मौत की सजा की पुष्टि के लिए अपील दायर की थी, वहीं दोषियों ने अपनी सजा और दोषसिद्धि के खिलाफ अपील दाखिल की थी। मामला 2015 से हाईकोर्ट में लंबित रहा।

2022 में राज्य सरकार ने अदालत को बताया था कि सबूतों की बड़ी मात्रा के चलते सुनवाई में कम से कम पांच से छह महीने लगेंगे। इसके बाद बार-बार शीघ्र निपटारे के अनुरोधों पर जुलाई 2024 में एक विशेष पीठ गठित की गई, जिसने रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू की।

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पक्षकारों की दलीलें
दोषियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्तागण एस. मुरलीधर, युग मोहित चौधरी, नित्या रामकृष्णन और एस. नागमुथु ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर था और ट्रायल कोर्ट ने दोषसिद्धि में गंभीर गलतियाँ कीं।

राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक राजा ठकारे ने ट्रायल कोर्ट के फैसले का समर्थन किया और कहा कि मामला “दुर्लभतम में दुर्लभ” श्रेणी में आता है और मौत की सजा उचित है।

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