कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पूर्व माइक्रोसॉफ्ट इंडिया कार्यकारी लैथिका पाई और टेक दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट के बीच चल रहे कानूनी विवाद में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेशों को तीसरे पक्ष द्वारा प्रकाशित किया जा सकता है। कोर्ट ने इस संबंध में पूर्ण प्रतिबंध की आशंका को खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने 14 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में प्रयुक्त भाषा पहली नजर में प्रकाशन पर रोक लगाती प्रतीत हो सकती है, लेकिन गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि यह रोक केवल वादी (लैथिका पाई) पर लागू होती है।
हाईकोर्ट ने कहा, “’न ही अदालत के आदेश का प्रकाशन करे’ — इस वाक्यांश की व्याख्या वादी के संदर्भ में की जानी चाहिए। इसका तात्पर्य है कि वादी को आदेश के प्रकाशन से रोका गया है, न कि आदेश को पूर्ण रूप से सार्वजनिक करने से।”

दरअसल, लैथिका पाई ने बेंगलुरु की ट्रायल कोर्ट में दावा किया था कि एक प्रोजेक्ट से जुड़ी लंबी आंतरिक जांच के कारण उन्हें माइक्रोसॉफ्ट से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। चार वर्षों तक चली वह जांच निष्कर्षहीन रही, जिससे उनकी पेशेवर साख को गंभीर नुकसान पहुंचा।
माइक्रोसॉफ्ट ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज किया है।
शुरुआत में पाई ने दिल्ली हाईकोर्ट में सिविल मुकदमा दायर किया था, लेकिन माइक्रोसॉफ्ट द्वारा क्षेत्राधिकार पर आपत्ति उठाए जाने के बाद उन्होंने मामला वापस ले लिया और बेंगलुरु की अदालत में दोबारा दायर किया।
9 जून को ट्रायल कोर्ट में माइक्रोसॉफ्ट ने सभी संबंधित दस्तावेजों को संरक्षित रखने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद अदालत ने पाई को निर्देश दिया था कि जब तक अगला आदेश न आए, वे न तो माइक्रोसॉफ्ट की यह प्रतिबद्धता और न ही अदालत के आदेश को सार्वजनिक करें। इसके खिलाफ पाई ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
हाईकोर्ट में पाई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी और अधिवक्ता आईएस देवैया पेश हुए, जबकि माइक्रोसॉफ्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ध्यन चिन्नप्पा और अधिवक्ता मोहम्मद शमीर ने पक्ष रखा।