बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को इतालवी लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा के खिलाफ दायर उस जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया जिसमें उस पर पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों का अनुचित उपयोग करने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने याचिकाकर्ताओं की कानूनी स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में कोई वैध अधिकार नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मर्णे की खंडपीठ ने पांच अधिवक्ताओं द्वारा दायर याचिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता न तो कोल्हापुरी चप्पलों के पंजीकृत स्वामी हैं और न ही उनके पास इसके भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication – GI) अधिकार हैं।
पीठ ने कहा, “आप कोल्हापुरी चप्पलों के स्वामी नहीं हैं। आपकी याचिका का लोकस क्या है और इसमें जनहित क्या है? जिसे असली शिकायत हो, वह दीवानी मामला दायर कर सकता है। जनहित कहां है इस याचिका में?”

याचिका में आरोप लगाया गया था कि प्राडा ने अपनी हाल ही में जारी स्प्रिंग/समर कलेक्शन की ‘टो-रिंग सैंडल्स’ में कोल्हापुरी चप्पलों की नकल की है। कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र और कर्नाटक की सांस्कृतिक और हस्तशिल्प विरासत का प्रतीक मानी जाती हैं। प्राडा के ये सैंडल्स लगभग ₹1 लाख प्रति जोड़ी की कीमत पर बिक रहे हैं।
हालांकि अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो GI टैग के पंजीकृत धारक हैं और न ही प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं, इसलिए यह याचिका विचार योग्य नहीं है और इसका कोई औचित्य नहीं बनता। पीठ ने कहा कि विस्तृत आदेश बाद में पारित किया जाएगा।