याचिकाकर्ता यह तय नहीं कर सकते कि उनका मामला कौन सा जज सुने: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई भी याचिकाकर्ता यह तय नहीं कर सकता कि उसके मामले की सुनवाई कौन सा जज करेगा। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक मामलों का आवंटन मुख्य न्यायाधीश द्वारा जारी रोस्टर के अनुसार होता है और इसमें पक्षकारों की कोई भूमिका नहीं होती। यह टिप्पणी जस्टिस पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने डब्ल्यूपी (सी) संख्या 33689/2024 (Asif Azad बनाम Jaimon Baby व अन्य) खारिज करते हुए की, जो डिफॉल्ट के आधार पर निरस्त कर दी गई।

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता असिफ़ अज़ाद, जो स्वयं पक्षकार के रूप में उपस्थित हुए, ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर एक्सहिबिट P8 को रद्द करने और एक्सहिबिट P5 को खारिज करने की मांग की थी। यह मामला शिकायत संख्या ST 2600/2018 (धारा 138, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के तहत) से संबंधित था, जो जुडिशियल मजिस्ट्रेट ऑफ फर्स्ट क्लास-I, कोट्टारक्करा, कोल्लम के समक्ष लंबित था। यह शिकायत प्रतिवादी जैमोन बेबी द्वारा दर्ज कराई गई थी।

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अज़ाद ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 20, 21 और 141 के तहत अपने संवैधानिक और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा किया। याचिका को प्रारंभिक दोषों को दूर करने के बाद फिर से प्रस्तुत किया गया था, और 40 दिन की देरी की क्षमा याचना स्वीकार कर पहले प्रतिवादी को नोटिस जारी किया गया। हालांकि, नोटिस यह उल्लेख करते हुए वापस आ गया कि “पता छोड़ दिया गया है”।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ:

13 जून 2025 को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर सभी दोष दूर करने का निर्देश दिया था, यह चेतावनी देते हुए कि ऐसा न करने पर मामला दोष सूची में डाल दिया जाएगा।

8 जुलाई 2025 को ऑनलाइन सुनवाई के दौरान अज़ाद ने जस्टिस कुन्हिकृष्णन से अनुरोध किया कि वे इस मामले की सुनवाई न करें, क्योंकि इससे पहले एक अन्य मामले में उन पर लागत (cost) लगाई गई थी।

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इस पर जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने स्पष्ट रूप से कहा:

“किसी एक मामले में लागत लगने का अर्थ यह नहीं है कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर सभी मामलों में लागत ही लगाई जाएगी। प्रत्येक मामला उसकी अपनी योग्यता के आधार पर तय किया जाएगा।”

कोर्ट ने आगे कहा:

“कोई भी पक्षकार कोर्ट को यह निर्देश नहीं दे सकता कि उसकी याचिका किस जज को नहीं सुननी चाहिए। रोस्टर माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा तय किया जाता है। यदि आवश्यक हो, तो जिस जज को मामला सौंपा गया है, वही निर्णय ले सकता है कि वह मामला सुनेगा या नहीं। परंतु कोई पक्षकार यह नहीं तय कर सकता कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा रोस्टर के अनुसार जिस जज को अधिकार दिए गए हैं, उससे मामला हटाया जाए। यदि ऐसा चलन शुरू हो गया, तो पक्षकार अपनी पसंद के अनुसार जज चुनने लगेंगे, जो स्वीकार्य नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता की दलीलें अदालत की अवमाननापूर्ण थीं, परंतु यह मानते हुए कि वह स्वयं उपस्थित हो रहे थे और संभवतः अदालती मर्यादाओं से पूरी तरह अवगत नहीं थे, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। हालांकि, जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने चेतावनी दी कि भविष्य में इस प्रकार के आचरण पर कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।

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निर्णय:

चूंकि याचिकाकर्ता ने 13 जून 2025 को दिए गए निर्देशों के अनुसार प्रक्रियात्मक दोष दूर नहीं किए, इसलिए केरल हाईकोर्ट ने याचिका डिफॉल्ट के आधार पर खारिज कर दी।

मामले का शीर्षक: Asif Azad बनाम Jaimon Baby एवं केरल राज्य
मामला संख्या: W.P.(C) संख्या 33689/2024

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