पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर राज्य के एडवोकेट जनरल (एजी) कार्यालय में विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए आरक्षण लागू करने के फैसले पर जवाब तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने यह आदेश पंचकूला निवासी विकास बिश्नोई की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अदालत ने राज्य सरकार को 11 अगस्त तक जवाब दाखिल करने को कहा है।
यह याचिका अप्रैल 2025 में जारी एक विज्ञापन को चुनौती देती है, जिसमें पहली बार एजी कार्यालय में विधि अधिकारियों के 184 पदों में से 57 पद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित किए गए थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि यह विज्ञापन और उसके आधार पर की गई नियुक्तियाँ संविधान और कानून के विपरीत हैं।

याचिका में कहा गया है कि यह नियुक्तियाँ पंजाब विधि अधिकारी (नियुक्ति) अधिनियम, 2017 के नियमों के भी खिलाफ हैं और इन्हें अमान्य (Ultra vires) घोषित किया जाए। साथ ही एक नया विज्ञापन जारी करने की मांग की गई है, जिसमें आरक्षण का प्रावधान न हो।
बिश्नोई की ओर से यह भी तर्क दिया गया है कि विधि अधिकारी का पद कोई सिविल पद नहीं है और न ही यह राज्य सरकार की नौकरी मानी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत आरक्षण केवल सार्वजनिक सेवाओं और नौकरियों तक सीमित है, न कि पेशेवर अनुबंधों, जैसे कि वकीलों की नियुक्तियों पर।
याचिका में कहा गया है, “ऐसे अस्थायी या अनुबंधित पदों पर आरक्षण लागू करना मेधावी प्रतिभाओं, प्रशासनिक दक्षता और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया को प्रभावित करता है, और यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो इससे देश के अन्य राज्यों में भी विधि अधिकारियों के पदों पर इसी तरह के आरक्षण की मांग उठ सकती है।”
गौरतलब है कि जिन 184 विधि अधिकारियों की नियुक्ति इस विज्ञापन के तहत की गई थी, उन्हें भी इस मामले में पक्षकार बनाया गया है।