नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिम बंगाल सरकार, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वे राज्य में गंगा कार्य योजना के क्रियान्वयन में पाई गई कमियों और खामियों को स्पष्ट रूप से चिन्हित करते हुए विस्तृत हलफनामा दाखिल करें।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर गंभीर चिंता जताई कि प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के तहत आंशिक प्रयासों के बावजूद राज्य में कई नालों से अब भी बिना उपचारित सीवेज सीधे गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है।
पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के किनारे प्रदूषण नियंत्रण उपायों की समीक्षा करते हुए एनजीटी ने पाया कि कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) या तो पूरी तरह निष्क्रिय हैं या पर्यावरणीय मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। ट्राइब्यूनल ने परियोजनाओं के क्रियान्वयन, जल गुणवत्ता के आंकड़ों और समुचित योजना निर्माण में गंभीर खामियों को चिह्नित किया।

सीपीसीबी की रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य के 30 शहरों में स्थित 42 एसटीपी में से केवल 31 ही कार्यशील हैं, और इनमें से भी मात्र 7 संयंत्र ही निर्धारित उत्सर्जन मानकों को पूरा कर पा रहे हैं। एनजीटी ने यह भी कहा कि सीपीसीबी यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि इन एसटीपी की कुल स्थापित क्षमता कितनी है और उसमें से कितना प्रभावी रूप से उपयोग किया जा रहा है।
राज्य सरकार की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया कि कई बड़े प्रदूषित नालों के लिए अब तक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) ही तैयार नहीं की गई है और इनके लिए कोई निश्चित समयसीमा भी नहीं दी गई है।
इन सभी तथ्यों के मद्देनज़र, ट्राइब्यूनल ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, एनएमसीजी के महानिदेशक और सीपीसीबी के सदस्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे 8 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई से पूर्व हलफनामा दाखिल करें, जिसमें मौजूदा खामियों और उन्हें दूर करने के लिए प्रस्तावित उपायों का विवरण हो।
इसके साथ ही एनजीटी ने निर्देश दिया कि एक समग्र पुनर्जीवन योजना तैयार कर क्रियान्वित की जाए, जिसका मुख्य उद्देश्य यह हो कि सीवेज का प्रवाह तूफानी जल नालों और नहरों में न होकर केंद्रीकृत और विकेन्द्रीकृत सीवेज उपचार ढांचे के माध्यम से नियंत्रित किया जाए।