सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बिहार सरकार के क्लर्क नरेश कुमार सिन्हा की बर्खास्तगी को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार नियुक्ति में धोखाधड़ी का आरोप साबित करने में असफल रही और सेवा समाप्ति के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यह फैसला जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने 2 अप्रैल 2025 को सिविल अपील संख्या ___/2025 (एसएलपी (सिविल) संख्या 8840/2022 से उत्पन्न) में सुनाया।
कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि सिन्हा को सेवा में बहाल किया जाए और बर्खास्तगी की तारीख से पुनः बहाली तक का 50% बकाया वेतन व सभी अन्य देय लाभ दिए जाएं। साथ ही, राज्य को भविष्य में उचित विधिक प्रक्रिया अपनाते हुए आवश्यक कार्रवाई करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।
मामला क्या था?
नरेश कुमार सिन्हा की नियुक्ति 24 जून 1989 को बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग में क्लर्क के पद पर हुई थी, जो 22 जून 1981 के आर्यभरत समाचारपत्र में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से हुई थी।

सिन्हा ने 4 जुलाई 1989 को एस.एम.टी. हाई स्कूल, वैशाली में योगदान दिया। प्रारंभ में प्रधानाध्यापक ने उनकी जॉइनिंग का विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें सेवा में स्वीकार कर लिया गया। अगले 16 वर्षों तक वह विभिन्न विद्यालयों में स्थानांतरित होते रहे, जिनमें देविपद चौधरी शहीद स्मारक (मिलर) स्कूल और उरेहान गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल, बिहटा, पटना शामिल थे।
19 सितंबर 2005 को जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ), पटना ने नोटिस जारी कर आरोप लगाया कि उनकी नियुक्ति फर्जी है और सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्ति आदेश जारी नहीं किया गया था। सिन्हा के स्पष्टीकरण देने के बावजूद 21 नवंबर 2005 को उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। विभागीय अपील भी 13 अक्टूबर 2006 को खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट में कार्यवाही
सिन्हा ने पटना हाईकोर्ट में रिट याचिका (CWJC संख्या 15852/2006) दायर की, जिसे एकल पीठ ने 20 फरवरी 2018 को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि नियुक्ति आदेश उप निदेशक, मानव संसाधन विकास विभाग (DDHRD) द्वारा जारी किया गया था, जो कि सक्षम प्राधिकारी नहीं थे।
इसके बाद सिन्हा ने लेटर्स पेटेंट अपील (LPA संख्या 379/2018) दायर की, जिसे खंडपीठ ने 17 मई 2019 को विभागीय रिपोर्टों और हलफनामों के आधार पर खारिज कर दिया। इसमें कहा गया कि नियुक्ति आदेश का मूल रिकॉर्ड अनुपलब्ध है, इसलिए उसे फर्जी माना गया।
सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि:
- DDHRD को तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार नहीं था।
- सिन्हा की नियुक्ति अवैध और धोखाधड़ीपूर्ण थी।
- धोखाधड़ी के मामलों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (जैसे सुनवाई का अधिकार) लागू नहीं होते।
- डिस्पैच रजिस्टर की प्रविष्टि स्थानांतरण आदेशों की थी, न कि नियुक्ति आदेशों की।
- नियुक्ति का मूल रिकॉर्ड अनुपलब्ध होने के कारण उसे वैध नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने गहन विश्लेषण करते हुए पाया कि:
1. नियुक्ति की प्रामाणिकता:
नियुक्ति आदेश बिहार सरकार, मानव संसाधन विकास विभाग के अतिरिक्त निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित था, केवल DDHRD द्वारा नहीं। इसलिए, सेवा समाप्ति का मुख्य आधार तथ्यात्मक रूप से गलत था।
2. रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में विफलता:
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार नियुक्ति से संबंधित मूल रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं कर पाई। महज ‘रिकॉर्ड नहीं मिलने’ का दावा, बिना आंतरिक जांच के, अस्वीकार्य माना गया।
3. धोखाधड़ी के आरोप का अभाव:
कोर्ट ने एडवांस लॉ लेक्सिकॉन (2005), रामचंद्र सिंह बनाम सावित्री देवी [(2003) 8 SCC 319], लैजारस एस्टेट्स लिमिटेड बनाम बीस्ले [(1956) 1 QB 702], और डेरी बनाम पीक [(1889) 14 AC 337] मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि धोखाधड़ी के आरोप विशेष रूप से स्पष्ट किए जाने चाहिए और कठोर साक्ष्य से सिद्ध होने चाहिए — केवल आरोप लगाने से पर्याप्त नहीं।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“सिर्फ ‘धोखाधड़ी’ शब्द का इस्तेमाल करना पर्याप्त नहीं है। फर्जी दस्तावेज या धोखाधड़ी का सामान्य बयान पर्याप्त नहीं है।”
4. सेवा और स्थिति:
सिन्हा ने 16 वर्षों तक नियमित वेतन के साथ सेवा दी थी, जिससे उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिल गया था।
5. प्रतिकूल अनुमान का सिद्धांत:
बार-बार निर्देशों के बावजूद रिकॉर्ड पेश न करने पर कोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ प्रतिकूल अनुमान लगाया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने माना कि:
- बर्खास्तगी का आदेश तथ्यात्मक और विधिक रूप से अस्थिर था।
- हाईकोर्ट के एकल पीठ और खंडपीठ के निष्कर्ष रिकॉर्ड के प्रतिकूल और बाहरी विचारों पर आधारित थे।
- धोखाधड़ी का आरोप असिद्ध और आधारहीन था।
- बिना उचित प्रक्रिया अपनाए, 16 वर्षों की सेवा के बाद की गई बर्खास्तगी अनुचित थी।
कोर्ट ने कहा:
“सेवा समाप्ति का आदेश तथ्य और रिकॉर्ड के आधार पर स्पष्ट रूप से अस्थिर है… आरोप की किसी जांच के बिना सेवा समाप्ति का आदेश रद्द करने योग्य है।”
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार की, हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द किया और सेवा समाप्ति का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिए कि:
- नरेश कुमार सिन्हा को सेवा में बहाल किया जाए।
- बर्खास्तगी की तारीख से पुनः बहाली तक 50% बकाया वेतन दिया जाए।
- सभी आनुषंगिक लाभ प्रदान किए जाएं।
- राज्य सरकार को भविष्य में उचित प्रक्रिया अपनाते हुए कार्रवाई करने की स्वतंत्रता दी गई।