इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने रायबरेली के सोमू ढाबा हत्याकांड से जुड़े एक मामले में आरोपी द्वारा कुछ पुलिसकर्मियों को बचाव पक्ष के गवाहों के रूप में तलब करने के अनुरोध को आंशिक रूप से स्वीकार किया है। हाईकोर्ट ने तीन विशेष पुलिस अधिकारियों को गवाही के लिए बुलाने की अनुमति दी, लेकिन कुछ दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण को अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि त्वरित न्याय प्रक्रिया और न्याय के उद्देश्यों के बीच संतुलन जरूरी है। साथ ही, न्यायालय ने आरोपी को महत्वपूर्ण तथ्यों, जैसे कि बचाव साक्ष्य समापन की सहमति, को छुपाने पर कड़ी फटकार लगाई और भविष्य में ऐसी हरकतों से बचने की चेतावनी दी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी द्वारा 7 जुलाई 2025 को एप्लिकेशन यू/एस 482 नंबर – 2141 ऑफ 2025 (सचिन कुमार वर्मा उर्फ सचिन कुमार सोनी @ पवन सोनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य) में सुनाया गया। इसका न्यूट्रल सिटेशन 2025:AHC-LK0-38406 है। यह मामला कोर्ट नंबर 15 में सुना गया, जहां याची पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री देवांश सिंह चथान, अनिल कुमार यादव और मनोज कुमार पेश हुए। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ AGA-I श्री अनुराग वर्मा उपस्थित हुए, और विपक्षी पक्ष संख्या 2 की ओर से श्री विकास विक्रम सिंह उपस्थित हुए।
10 अक्टूबर 2019 को रायबरेली के सोमू ढाबा के मालिक और कर्मचारियों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया कि सूचक का बेटा अपने साथियों के साथ वहां खाना खाने गया था, जहां उसे लाठी-डंडों और लोहे की रॉड से पीटा गया। बाद में उसका शव गढ़ खास के पास एक गोदाम के निकट मिला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर दस चोटों का उल्लेख था। जांच के बाद 25 दिसंबर 2019 को चार्जशीट दाखिल की गई, और 10 जनवरी 2020 को संज्ञान लिया गया। 16 सितंबर 2022 को सत्र न्यायालय रायबरेली में आरोप तय हुए।

12 फरवरी 2025 को याची ने धारा 233 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आवेदन देकर बचाव पक्ष के साक्ष्य बुलाने का अनुरोध किया, जिसमें 18 नवंबर 2019 की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, 19 नवंबर 2019 का कारण बताओ नोटिस, और पुलिस स्टेशन मिल एरिया, रायबरेली की जनरल डायरी की प्रविष्टियां शामिल थीं। साथ ही, तत्कालीन सर्किल अधिकारी, थाना प्रभारी, कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल को तलब करने की मांग की, जिन्होंने ढाबा बंद कराने की कार्रवाई की थी।
ट्रायल कोर्ट का आदेश और हाईकोर्ट में चुनौती
13 फरवरी 2025 को ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रारंभिक जांच रिपोर्ट आवश्यक नहीं थी और इसका उद्देश्य केवल मुकदमे में देरी करना था। कोर्ट ने कहा कि पुलिसकर्मी अभियोजन पक्ष के गवाह नहीं थे और घटना के प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे, इसलिए उनका तलब किया जाना अनावश्यक था।
याची ने इस आदेश को हाईकोर्ट में धारा 482 (जजमेंट में बीएनएसएस की धारा 528 के रूप में उल्लिखित) के तहत चुनौती दी। उनका तर्क था कि ढाबा रात 2 बजे तक खुला था, जिससे उनकी उपस्थिति साबित होती और वह घटना स्थल (जो लगभग 6 किलोमीटर दूर था) पर नहीं हो सकते थे।
विपक्षी पक्ष और राज्य ने काउंटर हलफनामे में 20 फरवरी 2025 का ट्रायल कोर्ट आदेश प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया था कि याची और सह-अभियुक्त विनय कुमार के बचाव पक्ष के साक्ष्य को बंद मान लिया गया था और इस पर हस्ताक्षर भी हुए थे। हाईकोर्ट ने पिछले आदेशों (जैसे कि जमानत याचिका संख्या 2431/2024, सुप्रीम कोर्ट SLP (क्रिमिनल) नंबर 666/2024) का हवाला देते हुए त्वरित सुनवाई की आवश्यकता पर बल दिया।
कानूनी प्रश्न और कोर्ट का विश्लेषण
मुख्य प्रश्न यह था कि क्या ट्रायल कोर्ट का आदेश सही था और क्या याची ने तथ्यों को छुपाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि 20 और 21 फरवरी 2025 के आदेशों में बचाव साक्ष्य समापन का उल्लेख याची के पक्ष में महत्वपूर्ण था, जिसे उसने याचिका दाखिल करते समय छुपाया। 1671 पृष्ठों के सप्लीमेंट्री हलफनामे में संबंधित आदेश पृष्ठ 1539 पर संलग्न करना, बिना विशेष उल्लेख के, “चालाकीपूर्ण मसौदा” माना गया। कोर्ट ने याची और उसके अधिवक्ता को भविष्य में इस प्रकार की हरकतों से बचने की चेतावनी दी, हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रश्न को देखते हुए याचिका पर मेरिट में सुनवाई की।
मेरिट में कोर्ट ने कहा कि त्वरित सुनवाई महत्वपूर्ण है, परंतु न्याय की कीमत पर नहीं। पुलिसकर्मियों की गवाही याची के पक्ष में एलीबाई (alibi) सिद्ध करने के लिए प्रासंगिक थी, जबकि प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, कारण बताओ नोटिस और डायरी की प्रविष्टियां अनुशासनात्मक प्रकृति की थीं और आपराधिक मुकदमे में अप्रासंगिक थीं।
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार किया। 13 फरवरी 2025 का आदेश आंशिक रूप से निरस्त किया गया। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, कारण बताओ नोटिस और जनरल डायरी की प्रतियां पेश करने का अनुरोध खारिज कर दिया गया, लेकिन तत्कालीन थाना प्रभारी श्री राज कुमार पांडे, कांस्टेबल वीरेंद्र भार्गव, और हेड कांस्टेबल सुरेश चंद्र को गवाही के लिए तलब करने की अनुमति दी गई। रायबरेली के पुलिस अधीक्षक को बिना देरी उन्हें प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया, और याची पक्ष के अधिवक्ता को उसी तारीख को बिना स्थगन के उनकी गवाही करने को कहा गया।