केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाहिता महिलाओं द्वारा ससुराल में सौंपे गए गहनों की वापसी के लिए दायर याचिकाओं पर विचार करते समय अदालतों को व्यावहारिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, क्योंकि ऐसे मामलों में घरेलू और पारिवारिक वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की पीठ ने मातृक अपील संख्या 773/2020 में यह निर्णय सुनाया, जिसमें फैमिली कोर्ट, तिरूर के आदेश को आंशिक रूप से बरकरार रखते हुए यह माना कि विवाहिता को 53 सोने के पाव (sovereigns) उसकी सास (दूसरी प्रतिवादी) से लौटाए जाने चाहिए, जबकि देवर (पहले प्रतिवादी) की जिम्मेदारी समाप्त कर दी गई।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता का विवाह प्रदीप नामक युवक से 25 अप्रैल 2012 को हुआ था, जो उस समय विदेश में कार्यरत था। विवाह के समय याचिकाकर्ता के अनुसार उसके पास कुल 81 पाव सोने के गहने थे — 53 पाव उसके पिता द्वारा खरीदे गए, 21 पाव रिश्तेदारों ने उपहार स्वरूप दिए, और 6 पाव उसके मंगेतर प्रदीप ने सगाई के समय दिए थे।

विवाह के तुरंत बाद प्रदीप काम पर वापस विदेश चला गया, लेकिन दुर्भाग्यवश 16 जनवरी 2013 को उसने आत्महत्या कर ली। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि ससुराल में रहने के दौरान उसने अपने सारे गहने (थाली चेन को छोड़कर) सास-ससुरालवालों की सुरक्षा में सौंप दिए थे। पति की मृत्यु के बाद वह लगभग 15 दिन ससुराल में रही, लेकिन ससुरालवालों के दबाव के चलते उसे घर छोड़ना पड़ा। बार-बार मांग करने के बावजूद गहनों की वापसी नहीं हुई, जिससे विवश होकर उसने याचिका दायर की।
प्रतिवादियों का पक्ष
सास और देवर ने आरोपों से इनकार किया, यह दावा करते हुए कि याचिकाकर्ता के पास ही सभी गहने सुरक्षित थे। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पिता के पास 81 पाव सोना देने की आर्थिक क्षमता नहीं थी और इसके समर्थन में 2014 के एक गोल्ड लोन का रिकॉर्ड (Ext.X1) प्रस्तुत किया।
अदालत की विश्लेषणात्मक टिप्पणियां
अदालत ने पाया कि मालाबार गोल्ड एंड डायमंड्स, तिरूर (Ext.P2 श्रृंखला) से 53 पाव सोना खरीदे जाने के बिल और विवाह की तस्वीरें (Ext.P3 श्रृंखला) याचिकाकर्ता के पक्ष को मज़बूती से प्रमाणित करते हैं।
पीठ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की: “भारतीय परिवारों में एक नवविवाहिता द्वारा अपने गहनों को पति या ससुरालवालों को सौंपना घरेलू विश्वास के माहौल में होता है, जहाँ वह रसीद या स्वतंत्र गवाह लेने की स्थिति में नहीं होती।” अदालत ने माना कि ऐसी परिस्थिति में महिला से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह भविष्य में संभावित कानूनी विवादों की आशंका में दस्तावेज़ तैयार रखे।
अदालत ने कहा: “यदि ऐसे मामलों में आपराधिक कानून की तरह संदेह से परे सख्त प्रमाण की आवश्यकता रखी जाए, तो यह अन्याय होगा। इसलिए अदालत को संभावनाओं के संतुलन (preponderance of probabilities) के सिद्धांत के आधार पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।”
अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने यह साबित कर दिया कि उसने 53 पाव सोना अपनी सास को सौंपा था। चूंकि देवर अलग मकान में रहता था, उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ठहराई गई। आदेश में कहा गया:
- दूसरी प्रतिवादी (सास) को याचिकाकर्ता को 53 पाव सोने के गहने लौटाने होंगे।
- दूसरी प्रतिवादी को मामले की लागत (cost) का भुगतान भी करना होगा।
इस प्रकार, अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई, और अदालत ने विवाहिता महिलाओं के ऐसे मामलों में व्यावहारिक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया।