इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के “पेयरिंग” (जोड़ीकरण) संबंधी नीति को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने 7 जुलाई 2025 को यह निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यह नीति न तो संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन करती है और न ही ‘निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ (RTE Act) के प्रावधानों के खिलाफ है।
यह निर्णय रिट याचिका संख्या 6290/2025 (कृष्णा कुमारी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य) और रिट याचिका संख्या 6292/2025 (मास्टर नितेश कुमार व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य) में दिया गया। दोनों याचिकाओं में सरकार द्वारा 16 जून 2025 और 24 जून 2025 को जारी आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिनके तहत 105 सरकारी विद्यालयों को आपस में जोड़े जाने की योजना बनाई गई थी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें:
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एल.पी. मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि:

- यह नीति RTE अधिनियम और राज्य नियमों के तहत निर्धारित 1 किलोमीटर की ‘पड़ोस की सीमा’ (neighbourhood limit) का उल्लंघन करती है।
- बच्चों को अब अधिक दूरी तय करनी होगी जिससे उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा।
- सरकार का यह आदेश केवल कार्यपालिका का निर्देश (executive instruction) है, जो संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत ‘कानून’ की परिभाषा में नहीं आता और मौलिक अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकता।
राज्य सरकार की दलीलें:
राज्य की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने कोर्ट में तर्क दिया कि:
- यह नीति ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ के तहत संसाधनों के अनुकूल उपयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाई गई है।
- राज्य में अनेक विद्यालय ऐसे हैं जहां नामांकन शून्य या अत्यंत कम है, जिससे संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है।
- नियम 4(2) के तहत सरकार को यह छूट प्राप्त है कि जहां आवश्यक हो वहां दूरी के मानकों से परे जाकर वैकल्पिक व्यवस्थाएं जैसे निःशुल्क परिवहन या आवासीय सुविधा की जा सकती है।
- बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है और विद्यालय बंद नहीं किए जा रहे, बल्कि उनका पुनर्गठन किया जा रहा है।
कोर्ट का निष्कर्ष:
न्यायालय ने कहा कि यह सरकार का नीतिगत निर्णय है और इसका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और संसाधनों का समुचित प्रयोग करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
“Annexure – 1 और Annexure – 2 के माध्यम से जारी नीतिगत निर्णय न तो अनुच्छेद 21A का उल्लंघन करते हैं और न ही RTE अधिनियम अथवा राज्य नियमों के विपरीत हैं।”
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि:
“नीतिगत निर्णयों की न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है, और जब तक यह सिद्ध न हो कि कोई मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है या निर्णय मनमाना या दुर्भावनापूर्ण है, तब तक कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता।”
- मामले: WRIT – C No. 6290 of 2025 व WRIT – C No. 6292 of 2025
- याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: डॉ. एल.पी. मिश्रा, प्रफुल्ल तिवारी, रमेश कुमार द्विवेदी, उत्सव मिश्रा, गौरव मेहरोत्रा
- प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता: अनुज कुदेसिया (AAG), ऋषभ त्रिपाठी, संदीप दीक्षित (वरिष्ठ अधिवक्ता), सी.एस.सी.