बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को जैन समुदाय के पर्युषण पर्व के दौरान नौ दिनों तक पशु वध पर प्रतिबंध लगाने को लेकर संदेह जताया और आगाह किया कि ऐसा आदेश जारी करने से अन्य धार्मिक समुदाय भी अपने-अपने त्योहारों के दौरान इसी तरह की मांगें कर सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ मुंबई, नासिक और पुणे नगर निगमों द्वारा 2024 में पारित उन आदेशों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पिछले वर्ष पर्युषण पर्व के दौरान केवल एक दिन के लिए पशु वध पर रोक लगाई गई थी। याचिकाकर्ता जैन ट्रस्ट ने 21 अगस्त से पूरे नौ दिनों के लिए पूर्ण प्रतिबंध की मांग की है, यह कहते हुए कि अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धांत है।
हालांकि, अदालत ने इस मांग के व्यापक प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की। पीठ ने कहा, “ऐसा न हो कि कल को हर धर्म अपने त्योहारों के लिए ऐसी ही मांग करने लगे। आप (जैन समुदाय) को पर्युषण पर्व के लिए नौ दिन का आदेश मिल जाएगा, फिर कोई और समुदाय गणेश चतुर्थी और नवरात्रि के लिए वैसा ही आदेश मांगेगा।”

ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने तर्क दिया कि पिछले साल बीएमसी ने मुंबई की विविध जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए केवल एक दिन की रोक लगाई थी। उन्होंने कहा कि नासिक और पुणे नगर निगमों ने बिना किसी ठोस कारण के इसी तरह के आदेश पारित किए, जबकि मीरा-भायंदर नगर निगम ने कोई आदेश जारी ही नहीं किया।
अदालत ने यह भी पूछा कि नौ दिन के प्रतिबंध के लिए कोई वैधानिक आधार क्या है। साथ ही कहा कि राज्य सरकार पहले ही साल में 15 दिन पशु वध पर रोक लगाती है, जिसमें पर्युषण का एक दिन शामिल है। इससे अधिक प्रतिबंध लगाने से पहले विभिन्न समुदायों के अधिकारों और खानपान की आदतों में संतुलन आवश्यक होगा।
वास्तविक प्रभावों को रेखांकित करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि मुंबई के आसपास के कई नगर निगमों के पास अपने खुद के बूचड़खाने नहीं हैं और वे मुंबई के देवनार स्लॉटरहाउस पर निर्भर हैं।
अंततः अदालत ने मुंबई, पुणे, नासिक और मीरा-भायंदर के नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे जैन ट्रस्ट की याचिका पर पुनर्विचार करें और 18 अगस्त तक निर्णय लें। अदालत ने स्वयं कोई सार्वभौमिक आदेश देने से परहेज़ किया।