सुप्रीम कोर्ट ने 1999 के चेक बाउंस मामले में पहचान की गलती के आधार पर दी अंतरिम राहत

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सीके अब्दुरहीमान को उस चेक बाउंस मामले में अंतरिम राहत प्रदान की है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि उन्हें गलत पहचान के कारण दोषी ठहराया गया है। यह मामला वर्ष 1999 का है और अब्दुरहीमान का कहना है कि जिस चेक को बाउंस का आधार बनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की गई, वह वास्तव में किसी ‘सीके अब्दुल्लाकुट्टी’ द्वारा जारी और हस्ताक्षरित किया गया था।

23 जून 2025 को न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने अब्दुरहीमान की अपील स्वीकार करते हुए उनकी सजा पर रोक लगाई और उन्हें ज़मानत दी। हालांकि, शर्त रखी गई कि उन्हें चेक राशि (₹20 लाख) का आधा हिस्सा यानी ₹10 लाख सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराना होगा।

मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त को सूचीबद्ध की गई है।

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मामला क्या है:

वर्ष 1998 में एक रबर एस्टेट की बिक्री के लिए एक समझौता हुआ था, जिसमें शिकायतकर्ता मुक्कथ मरक्कर हाजी और अब्दुरहीमान के बीच ₹20 लाख में सौदा तय हुआ था। मई 1999 में उक्त राशि का एक चेक जारी किया गया, लेकिन नवंबर 1999 में वह चेक अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस हो गया। हालांकि, चेक ‘सी अब्दुल्लाकुट्टी’ नामक व्यक्ति के खाते से जारी हुआ था, लेकिन कानूनी नोटिस अब्दुरहीमान को भेजा गया और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।

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निचली अदालतों का फैसला:

मार्च 2004 में पेरिन्थलमन्ना के न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ने अब्दुरहीमान को भारतीय परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 (चेक का अनादर) के तहत दोषी ठहराया। इसके बाद सेशंस कोर्ट ने 2006 में उन्हें बरी कर दिया। शिकायतकर्ता ने इस निर्णय को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने 2024 के दिसंबर में अब्दुरहीमान की दोषसिद्धि बहाल कर दी।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां:

हाईकोर्ट ने अब्दुरहीमान की “अजीब दलील” — कि यह पहचान की गलती का मामला है — को खारिज कर दिया। अदालत ने तीन बैंक गवाहों के बयान को महत्व दिया, जिन्होंने अब्दुरहीमान को चेक पर हस्ताक्षरकर्ता के रूप में पहचाना था। साथ ही यह भी कहा कि ‘अब्दुल्लाकुट्टी’ और ‘अब्दुरहीमान’ का घर का नाम एक ही था।

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हालांकि कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि चेक पर हस्ताक्षर और अब्दुरहीमान के नमूना हस्ताक्षर एक जैसे नहीं हैं, लेकिन यह माना कि हर बार हस्ताक्षर समान नहीं होते। इस आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन यह देखते हुए कि मामला बहुत पुराना है और केवल चेक बाउंस से जुड़ा है, कोर्ट ने सजा को कम करते हुए केवल ‘कोर्ट उठने तक’ की साधारण कारावास की सजा सुनाई और ₹23 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया।

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अब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील में अब्दुरहीमान ने दोहराया है कि वह न तो समझौते का पक्षकार थे, न ही उन्होंने कोई चेक जारी किया, और न ही चेक जिस खाते से जारी हुआ, वह खाता उनका था।

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