बॉम्बे हाईकोर्ट में जजों की कमी पर बोले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, कहा — स्वास्थ्य से समझौता न करें, कार्य-जीवन में संतुलन ज़रूरी

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जजों की कमी को लेकर चिंता जताई और न्यायाधीशों से अपील की कि वे कार्य के बोझ के बावजूद अपने स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन की उपेक्षा न करें। उन्होंने न्यायाधीशों को मिलने वाले बिजली और ईंधन भत्तों की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार पुनरीक्षा किए जाने का सुझाव भी दिया।

न्यायमूर्ति दत्ता शनिवार को मुंबई में आयोजित एक सम्मान समारोह में बोल रहे थे, जिसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई का अभिनंदन किया गया।

बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में यह संख्या 75 से बढ़ाकर 94 की गई थी, किंतु 2013 से 2020 के बीच केवल एक बार ही अदालत में 75 न्यायाधीश कार्यरत रहे। “इसके बाद से यह संख्या फिर कभी 75 तक नहीं पहुंची, 94 तो बहुत दूर की बात है,” उन्होंने कहा।

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न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “आप सोचते हैं कि 68 या 70 न्यायाधीश 90 की जगह काम कर सकते हैं? ऐसा संभव नहीं है। यह न केवल आपके लिए, बल्कि आपके परिवार और आप पर निर्भर लोगों के लिए भी अनुचित है।”

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उन्होंने न्यायिक अधिकारियों से आग्रह किया कि वे व्यक्तिगत और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखें। “परिवार को समय दीजिए। यदि आपके साथ कुछ अनहोनी होती है, तो लोग एक महीने तक सहानुभूति जताएंगे, परंतु उसके बाद कोई आपकी सेवा को याद नहीं करेगा,” उन्होंने कहा।

न्यायाधीशों को मिलने वाली सुविधाओं पर बात करते हुए न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि वर्तमान में निर्धारित 10,000 यूनिट वार्षिक बिजली भत्ता अब पर्याप्त नहीं है। “यह सीमा करीब 40 वर्ष पहले तय की गई थी, जब न एसी होते थे, न वॉशिंग मशीन, न डिशवॉशर। आज की आवश्यकताओं को देखते हुए यह सीमा व्यावहारिक नहीं है।”

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इसी प्रकार उन्होंने ईंधन भत्ते की प्रणाली में सुधार का सुझाव दिया। “हम प्रति माह 200 लीटर ईंधन के पात्र हैं, लेकिन अवकाश के दौरान उसका उपयोग नहीं हो पाता और वह वापस चला जाता है। यदि इसे वार्षिक 2,400 लीटर कर दिया जाए तो लचीलापन मिलेगा और सरकार पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ेगा।”

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि उन्होंने पूर्व में भी ये दोनों सुझाव संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखे थे, लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश गवई से विनम्र आग्रह किया कि इन प्रस्तावों पर पुनर्विचार किया जाए।

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